आजादी की लड़ाई
आधी आबादी के लिए दिल्ली आन्दोलन प्रकरण दिल्ली की सड़कें कैडलों का तांता और आजादी-आजादी के नारे से गूँज रहा है। संसद सदमे है आम जनता सड़कों पर है। सिर्फ एक सूर सुनाई दे रहा है- आजादी। भला कैसी आजादी ? आजादी तो हमें 65 वर्ष पहले ही मिल गई थी। 65 वर्षो से हम कहते आ रहे है कि हम आजाद है। क्या वास्तव में हम आजाद है ? नहीं, अगर होते आज हमारा देश आजादी-आजादी के नारों से नहीं गूँज रहा होता। अंग्रेजों की कुछ वर्षो की गुलामी से भारतवासी इतना तप गए कि 1857 से ही हिंसक विद्रोह शुरु कर दिए थे। लेकिन आज जिस आजादी के लिए संघर्ष हो रहा है वह सदियों से गुलामी में जकड़ी महिलाओं का संघर्ष है। यह वास्तव में हमें सोचने के लिए मजबूर कर रहा है कि देश आजाद हो गया। हम गुलामी वेदना भी जान गए थे। फिरभी इतने वर्षो तक हमारी आधी आबादी को गुलामी के जंजीरों में जकड़े रखा गया। आजादी क्या होती है ? इसके लिए क्यों इतने आंदोलन हुए और इतनी कुर्बानीयाँ दी गई ? सचमुच आजादी वह अनुभूति होती है जिसके लिए आदमी ही नहीं जानवर भी हरपल लालयित रहता है। हजारों कुर्बानीयाँ भी एक आजादी के आगे छोटी पड़ जाती है। जो...