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Showing posts from March 17, 2019

विडम्बनाओं और विरोधाभासों का अंत : महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment)

       'वर्षों से जहाँ औरतें देवी की स्वरुप मानी जाती हैं वहीं मंदिरों में उनका प्रवेश वर्जित रहा है।' यह विडम्बना नहीं तो और क्या है? कैसे विश्वाश किया जाए इन रीति-रिवाजों पर? जब मन किया देवी बना दिया, जब मन किया अछूत बना दिया। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि स्त्री को इस समाज ने अपनी आवश्यकतानुसार जी भरकर भोगा है। सवाल तो यही है यदि भोग की वस्तु ही मानना था, तो देवी क्यों बनाया? शायद इसलिए कि बुद्धिप्राप्त इस स्त्री नामक जीव का उपभोग किया जा सके।        यह अनावश्यक नहीं एक षड़यंत्र है, महिलाओं को अपने वश में कर उसका शोषण करने के लिए। कोई भी रिति-रिवाज उठाकर देखें तो वहां लाभ से ज्यादा औरतों की विवशता है, जैसे - सिंदूर लगाना, ससुराल जाना, ससुराल की घोर शोषणकारी रश्में-रिवाज अगैरह-बगैरह। रिवाजें तो यहाँ तक भी है सूरज उगने से पहले उठना, झाड़ू लगाना, सबसे बाद में खाना, कोई नहीं खाए  तो मत खाना।        बेशक कुछ लोग इन रिवाजों को रिवाज के स्थान पर वैज्ञानिकता और तर्क को पेश कर सही ठहरा सकते हैं।  लेकिन फिर भी वर्तमान स...