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विडम्बनाओं और विरोधाभासों का अंत : महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment)

       'वर्षों से जहाँ औरतें देवी की स्वरुप मानी जाती हैं वहीं मंदिरों में उनका प्रवेश वर्जित रहा है।' यह विडम्बना नहीं तो और क्या है? कैसे विश्वाश किया जाए इन रीति-रिवाजों पर? जब मन किया देवी बना दिया, जब मन किया अछूत बना दिया। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि स्त्री को इस समाज ने अपनी आवश्यकतानुसार जी भरकर भोगा है। सवाल तो यही है यदि भोग की वस्तु ही मानना था, तो देवी क्यों बनाया? शायद इसलिए कि बुद्धिप्राप्त इस स्त्री नामक जीव का उपभोग किया जा सके।        यह अनावश्यक नहीं एक षड़यंत्र है, महिलाओं को अपने वश में कर उसका शोषण करने के लिए। कोई भी रिति-रिवाज उठाकर देखें तो वहां लाभ से ज्यादा औरतों की विवशता है, जैसे - सिंदूर लगाना, ससुराल जाना, ससुराल की घोर शोषणकारी रश्में-रिवाज अगैरह-बगैरह। रिवाजें तो यहाँ तक भी है सूरज उगने से पहले उठना, झाड़ू लगाना, सबसे बाद में खाना, कोई नहीं खाए  तो मत खाना।        बेशक कुछ लोग इन रिवाजों को रिवाज के स्थान पर वैज्ञानिकता और तर्क को पेश कर सही ठहरा सकते हैं।  लेकिन फिर भी वर्तमान स...

Working Women and Housewife

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          I have seen a single woman carrying the burden of office, home, children, old-aged people and other family members restlessly. If she is weak on any front, then she has faced question marks of rituals and conduct. Still, I have seen them smiling and working by putting makeup on face and lipstick on lips .          In fact, if there is a hard-working woman in the agricultural fields or a woman working in a large office/firm, the similarity can be seen in both the situation. From the farm land to the office, if a woman returns home after working hard as a man, there is no mercy on women while men take rest after return. She immediately takes the burden of being a mother, being a daughter, and being a housewife.                     The women  belong  to poor families who work in the  fields/wages  do not get any maternity leave; they have to bea...