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Showing posts from January, 2013

बलात्कार हत्या से भी बड़ा जघन्य अपराध

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आंदोलन करो। महिलाओं के लिए सुरक्षा की मांग करो । कुछ नहीं तो बराबरी का हक मांगो। लेकिन सख्त कानून मत बनाओं। प्रशासन-व्यवस्था को सख्त मत करो। इसका कहीं दुरुपयोग हो जाएगा। बलात्कार का समाधान चाहिए तो अपने में सुधार करो। सामाज का सुधार करो। ऐसे सुझाव समाज के बुद्धिजीवी कहे जानेवाले लोग देना शुरु कर दिए हैं। आंदोलनकारी अब सोच में पड़ गए है। महिलाओं की सुरक्षा का मांग कर रहे थे, अब क्या मांगे ? कानून तो समाधान है नहीं। अपने में सुधार करने के लिए कहा जा रहा है। वे तो पहले से ही ठीक-ठाक हैं। किसी का बलात्कार नहीं कर सकते। अब सभी सोच –सोच कर पानी-पानी हो रहे हैं कि बलात्कार के लिए पूरी सामाजिक व्यवस्था ही जिम्मेदार है। लेकिन जब दिल्ली के चलती बस में सामूहिक बलात्कार कांड हुआ, तब स्वत : ही विशाल आंदोलन उभरा था। इस आंदोलन को जन्म देनेवाला कोई नेता, सामाज-सुधारक या लेखक नहीं था। वर्षो से पीड़ा सह रही जनता स्वयं जगकर सामाज-सुधार की मांग की। लेकिन आज सामाज-सुधार का ठेका नेता, लेखक और खुद को सामाज-सुधारक कहने वाले लोग ले रहे हैं। जनता की भवनाएं दर किनार की ज...

आजादी की लड़ाई

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आधी आबादी के लिए दिल्ली आन्दोलन प्रकरण   दिल्ली की सड़कें कैडलों का तांता और आजादी-आजादी के नारे से गूँज रहा है। संसद सदमे है आम जनता सड़कों पर है। सिर्फ एक सूर सुनाई दे रहा है- आजादी। भला कैसी आजादी ? आजादी तो हमें 65 वर्ष पहले ही मिल गई थी। 65 वर्षो से हम कहते आ रहे है कि हम आजाद है। क्या वास्तव में हम आजाद है ? नहीं, अगर होते आज हमारा देश आजादी-आजादी के नारों से नहीं गूँज रहा होता। अंग्रेजों की कुछ वर्षो की गुलामी से भारतवासी इतना तप गए कि 1857 से ही हिंसक विद्रोह शुरु कर दिए थे। लेकिन आज जिस आजादी के लिए संघर्ष हो रहा है वह सदियों से गुलामी में जकड़ी महिलाओं का संघर्ष है। यह वास्तव में हमें सोचने के लिए मजबूर कर रहा है कि देश आजाद हो गया। हम गुलामी वेदना भी जान गए थे। फिरभी इतने वर्षो तक हमारी आधी आबादी को गुलामी के जंजीरों में जकड़े रखा गया। आजादी क्या होती है ? इसके लिए क्यों इतने आंदोलन हुए और इतनी कुर्बानीयाँ दी गई ? सचमुच आजादी वह अनुभूति होती है जिसके लिए आदमी ही नहीं जानवर भी हरपल लालयित रहता है। हजारों कुर्बानीयाँ भी एक आजादी के आगे छोटी पड़ जाती है। जो...