बलात्कार हत्या से भी बड़ा जघन्य अपराध



आंदोलन करो। महिलाओं के लिए सुरक्षा की मांग करो । कुछ नहीं तो बराबरी का हक मांगो। लेकिन सख्त कानून मत बनाओं। प्रशासन-व्यवस्था को सख्त मत करो। इसका कहीं दुरुपयोग हो जाएगा। बलात्कार का समाधान चाहिए तो अपने में सुधार करो। सामाज का सुधार करो। ऐसे सुझाव समाज के बुद्धिजीवी कहे जानेवाले लोग देना शुरु कर दिए हैं।



आंदोलनकारी अब सोच में पड़ गए है। महिलाओं की सुरक्षा का मांग कर रहे थे, अब क्या मांगे? कानून तो समाधान है नहीं। अपने में सुधार करने के लिए कहा जा रहा है। वे तो पहले से ही ठीक-ठाक हैं। किसी का बलात्कार नहीं कर सकते। अब सभी सोच –सोच कर पानी-पानी हो रहे हैं कि बलात्कार के लिए पूरी सामाजिक व्यवस्था ही जिम्मेदार है।



लेकिन जब दिल्ली के चलती बस में सामूहिक बलात्कार कांड हुआ, तब स्वत: ही विशाल आंदोलन उभरा था। इस आंदोलन को जन्म देनेवाला कोई नेता, सामाज-सुधारक या लेखक नहीं था। वर्षो से पीड़ा सह रही जनता स्वयं जगकर सामाज-सुधार की मांग की। लेकिन आज सामाज-सुधार का ठेका नेता, लेखक और खुद को सामाज-सुधारक कहने वाले लोग ले रहे हैं। जनता की भवनाएं दर किनार की जा रही है। कहा जा रहा है कि भवनाओं में बहकर नियम-कानून नहीं बनाए जा सकते।




इतिहास उठाकर देखें तो भी इस बात में दम है कि नियम-कानून जनता नहीं बनाती थी। इससे पहले भारतीय इतिहास में बुद्धिजीवी आंदोलन करते थे। सरकार नियम-कानून बनाकर रुढ़ीवादियों पर लगाम कसती थी। सती-प्रथा जैसे रुढ़ीवाद को खत्म करने के लिए पहले बुद्धिजीवी को आगे आना पड़ा। सरकार ने सख्त कदम उठाया तब जाकर सती-प्रथा का नाश हुआ। वास्तव में पहले बुद्धिजीवीयों और सरकार का रुढ़ीवादी सोच सामाज से पहले बदलता था। लेकिन क्या आज के बुद्धिजिवीयों में वह क्षमता दिखाई दे रही है कि वे समाज का सुधार कर सके? संसद में बैठे नेताओं के बयानो से लग रहा है कि वे सामाज का भला कर सकते है?




यह आंदोलन गवाह है कि अब जनता समाज और बुद्धिजीवियों के समझ से ज्यादा आगे चल रही है। सामाज-सुधार का बिगुल जनता खुद बजा रही है। आंदोलन के बल पर कानून बनवा रही है। इसमें भी समाज के बुद्धिजीवी रोड़ा अटका रहे हैं। बलात्कार जैसा जघन्य अपराध ऐसे लोगों को मामूली लग रहा है। वे तरह-तरह के बहाने बनाकर कड़ी सजा का विरोध कर रहे हैं।



लेकिन जनता बलात्कार की पीड़ा वर्षो से भुगतती रही है। वह समझ चुकी है कि जबतक सामाज से बलात्कार का खात्मा नहीं होगा हमारी आधी आबादी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती ही रहेगी। जिसका भुगतभोगी हमारा पूरा सामाज होगा। लिंग अनुपात में कमी के साथ-साथ बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, और भ्रूण हत्या जैसे कई सामाजिक कुरीतियों को जन्म देनेवाला भी बलात्कार ही है।



जबतक बलात्कार का खात्मा नहीं होगा तबतक बाकी सामाजिक कुरीतियों का भी समूल नाश नहीं होगा। बलात्कार ही वह जड़ है जिसके चलते आज सामाज में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय है। जिसके कारण लोग बेटी पैदा करना नहीं चाहते। अगर बेटी पैदा कर भी दिए तो उसे घर की चाहरदीवारियों में बंद रखते है। उसकी जिंदगी घर के चाहरदीवारीयों तक ही सिमटा दी जाती है। घर के बाहर के सभी फैसलों से उसे वंचित कर दिया जाता है।



स्थिति ऐसी है कि जिस घर में पुरुष नहीं होते उस घर के बहु-बेटियों का जीना दुभर हो जाता है। बलात्कार और छेड़खानी की बुरी नियत महिलाओं को सुख-चैन की जिंदगी जीने नहीं देता है। आज के समय में महिलाएं पर्दा-प्रथा के तोड़कर घर से बाहर निकल रही हैं। अपने पैरो पर खड़ी हो रही हैं। लेकिन सामाज उसे माफ नहीं कर रहा है। उसे सजा देने के लिए बलात्कार और हिंसा जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। दहेज-प्रथा महिलाएं तोड़ सकती है। सामाज में बिना शादी के जीवन गुजार सकती है। लेकिन यह सामाज उसे आजाद जीवन जीने नहीं दे रहा है।


पुरुषवाद का दिन-व-दिन बढ़ता वर्चस्व बलात्कार को हथियार के रुप में अपना रहा है। आज महिलाएं जब पुरुषों को बढ़चढ़ कर हर क्षेत्रों में टक्कर दे रही हैं, तो उसे बलात्कार और हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है। यही नहीं जातीय, धार्मिक और सम्प्रदायिक टकराव की कीमत भी महिलाएं ही चुकाती हैं। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे से लेकर गुजरात दंगा जैसे सम्प्रदायिक हिंसा में महिलाओं का खुलकर बलात्कार किया गया। गरीब और दलित महिलाओं के साथ आए दिन हो रहे बलात्कार कांड भी इसी का उदाहरण है।



बलात्कार को लेकर लोगों की मानवीय संवेदना इतनी मर गई है कि बलात्कारी गर्व से घूमता है और पीड़ीता शर्म से मरती है या मार दी जाती है। जो जिन्दा बच भी जाती है उसे सामाज में सामान्य जिन्दगी जीने नहीं दिया जाता है। पीड़ित लड़की को गहरे सामाजिक और मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। जिसके कारण उसका बौद्धिक विकास रुक जाता है। अक्सर सभी मामले में बलात्कार पीड़ित लड़की आत्महत्या कर लेती है नहीं तो जिंदा लाश बनकर रह जाती है।



बलात्कार आज जबरदस्ती किया हुआ सम्भोग नहीं बल्कि आत्मघाती हिंसा है। इसे हिंसा के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। सम्भोग से कोई शारीरिक क्षति नहीं होती है। लेकिन बलात्कार के हिंसक तरीकें महिला को मौत के मुंह में धकेल देती है। अभी दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार से लेकर अन्य सभी घटनाओं को देखा जाए तो बलात्कार का रुप हत्या से भी ज्यादा हिंसक है। इसका इंसाफ बड़ी से बड़ी सजा (फांसी) देकर भी नहीं किया जा सकता।




कुछ लोग बलात्कार को एक मामूली संभोग बताकर सात से दस साल की सजा को बहुत ज्यादा करार दे रहे हैं। यह बात सुनने में वैसे ही बचकानी लग रहा है जैसे आशाराम बापू का बयान। कुछ लोग दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के लिए कड़ी से कड़ी सजा चाहते हैं लेकिन अन्य बलात्कार कांड के लिए कम। जबकि दिल्ली बलात्कार कांड से भी बर्बर बलात्कार की घटनाएं पहले भी हुई है और बाद में भी हुई है। फिर भी ऐसे बयानों से भेदभाव की बू आ रही है। हम नेताओं के ओछी बयानों का तो खुलकर विरोध करते हैं लेकिन जब बुद्धिजीवी ऐसे बयान देने लगे तो क्या करें?




बलात्कार के लिए कड़ी सजा देना बलात्कार पीड़िता पर कोई एहसान नहीं इंसाफ है। लोग कह रहे हैं कि इसका गलत फायदा उठाया जाएगा तो क्या इस डर से पीड़ित को इन्साफ ही नहीं दिया जाएरही बात गलत फायदा उठाने की तो क्या हम मानकर चलें कि सभी कड़े कानून गलत फायदा उठाने के लिए हीं बनते है? एक और आवाज़ उठ रहा है कि बलात्कार मामले सख्त कानून के कारण दर्ज होना बंद हो जाऐंगे। इस बात में कितनी सच्चाई है कहना मुश्किल है लेकिन अभी के बेजान कानून रहने पर भी बलात्कार के अस्सी प्रतिशत मामले दर्ज नहीं होते हैं।



बात अगर बलात्कार के रोक-थाम का किया जाए तो सबकी यही राय है खुद को बदलो, सामाज को बदलो। क्या खुद को बदलने से या कह देने भर से सामाज बदल जाता है? अगर इस बात में जरा भी दम होता तो दिल्ली के इतने बड़े आंदोलन के बाद बलात्कार की घटनाएं रुक जानी चाहिए थी। सामाज का इतिहास देखें तो पहली सच्चाई है सामाज को बदलने के लिए भी कई कदम उठाने पड़ते हैं । पहला कदम नियम-कानूम ही होता है।

Comments

Unknown said…
the way u represent the topic nd current situation about this rape shows is really fruitfull if someone really study it.....btw hatsoff to u kiran.....
Ramesh Kumar said…
Society is getting conscious as educating in reality. Education is not literacy, but complete development of mental status and thinking ability. Society means we people which make the society. There are lots of laws to stop the rape cases, then also rape news (sometimes brutal rape news) are coming daily from different parts of India. After reading this blog I come at the conclusion that girls or women are raped mentally again and again till death. Therefore it can be say that in case of murder people die only once, but in case of rape girls or women die with great pain again and again in their whole life. So that Kiran Kumari justifies through her blog that rape is much bigger crime than a murder. And hence punishment for rape should also be horrible and bigger than a murder. A strict law and its implementation may help to decline rape cases in India.
Ramesh Kumar said…
Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act 2012 whose consent has been taken in 2012 and brought as a law by the government in 2018 by an ordinance. Under this act there is a death penalty to the rape convicted of below 12 years age of girl. In other rape cases, convicted may be sentenced life imprisonment or death sentence. I hope the POCSO Act may be mile stone in line to reduce rape cases in India. I discussed the matter with Kiran Kumari, she is happy and says that there is requirement of lot more to do for reducing these cases.

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