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कामकाजी महिलाएं तथा घर की देखभाल (Working Lady and Home-Care)

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               दफ्तर , घर , बच्चे , बूढ़े और अन्य परिवार के सदस्यों का बोझ एक अकेले स्त्री को उठाते हुए  मैंने  देखा है। यदि किसी मोर्चे पर वह कमजोर पड़ी है तो उसपर संस्कारों और आचरणों के प्रश्न चिन्ह भी लगते देखा है। फिर भी चेहरे पर  मेकअप और ओठों पर लिपिस्टिक लगाकर मुस्कुराते देखा है।        सच में गौर करें तो खेतों में कठिन से कठिन श्रम करने वाली महिला हो या किसी बड़े दफ्तर में कार्य करने वाली महिला, दोनों  की परिस्थिति में समानता देखी जा सकती है। खेत से लेकर दफ्तर तक यदि स्त्री पुरुष के समान कठिन परिश्रम करके लौटे,  तो भी घर आकर पुरुष जहां आराम फरमाते हैं,  वहीं  स्त्रियों  पर कोई रहम नहीं होती । वह तुरंत एक मां होने का बोझ उठाती है, बहु होने का बोझ उठाती है और गृहिणी होने का भी बोझ उठाती है।        गरीब परिवार की वे महिलाएं जो खेतों में मजदूरी / कार्य करती हैं , उन्हें कोई मातृत्व अवकाश नहीं मिलता, घर का बोझ भी उन्हें ही उठा...