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Showing posts from October, 2017

ऑर्गेनिक कृषि क्या समय की मांग है ? (Organic Agriculture Demand)

हरित क्रां ति के फलस्वरूप संश्लेषित रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ है,  जिसके कारण पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में अधिकांश कृषि भूमि का निम्नीकरण हो चुका है ,  यह प्रक्रिया लगातार जारी है। इसके विकल्प के रुप में हम जैविक कृषि को अपना सकते है। जैविक कृषि ऐसी कृषि है जिसमें संश्लेषित रसायनों का नगन्य अथवा बिलकुल प्रयोग नहीं होता है। इसमें जैव उर्वरक, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि का प्रयोग करते हैं। इसप्रकार जैविक कृषि प्रकृति के अनुकूल कृषि पद्धति है। इस तरह की खेती से न केवल भूमि निम्नीकरण की समस्या को कम कर सकते हैं बल्कि पारिस्थितकी तंत्र का संरक्षण कर जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन भी कर सकते हैं। जैविक कृषि हमारी परम्परागत कृषि के समान ही है। हम इसे वर्षों से अपनाते आ रहे थे लेकिन वर्मान समय में इस कृषि में तीव्र गति से गिरावट आई है। यह पुन: ऑर्गेनिक/जैविक कृषि व्यावसायिक रूप में शुरू हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खाद्यान्नों की कमी ने हमें हरित क्रांति के लिए विवश किया, जिसमें रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ है। लेकिन समय के साथ इससे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य की...

डिजिटलीकरण से घटती दूरियां

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एक समय था,जब हम बैंकों से रूपए निकालने के लिए लम्बी लाइन लगा करते थे, फिर अगले दिन बाजार जाते और सामान खरीदते थे। आज का वक्त है घर बैठे मोबाइल और इंटरनेट से ऑनलाइन सारी शॉपिंग कर लेते है। बीते दो दशक पूर्व और आज की पूरी अर्थव्यवस्था बदल गई है। 1990 की दौर में मोबाइल फ़ोन कल्पना से परे था, जबकि आज हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। डिजिटलीकरण ने आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक गतिविधियों में तीव्र परिवर्तन लाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण की पहुंच काफी कम है फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका साकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे है। भूमि, आधार, बैंक खता, पासपोर्ट आदि की जानकारी ऑनलइन प्राप्त हो रही है।   ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच की दूरियाँ कम हुई है। सरकारी कार्यालयों जैसे - शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि से सम्बंधित जानकारी ऑनलइन प्राप्त हो जाने से न केवल सूचना की प्राप्ति आसान हुई है बल्कि इसमें होने वाले भ्रस्टाचार और ऊँच-नीच के भेद-भाव को भी कम किया है। 1990 के वक्त किसानों को मात्र थोड़ी जानकारी के लिए सरकारी कार्यालयों के लम्बे चक्कर काटने पड़ते थे। सरकारी ...

क्या पट्टे/संविदा पर कृषि आनेवाले समय की मांग है ?

      भारत में भूमि धारण क्षमता, दिन पर दिन बढ़ती जनसंख्या के कारण घटती जा रही है। जोत छोटे होने के कारण उत्पादन की अपेक्षा कृषि लागत बढ़ती जा रही है।  कृषि दिन पर दिन अलाभकारी होती जा रही है।  छोटी जोत वाले किसानों का बहुत बड़ा वर्ग इस समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में समस्या के समाधान के लिए संविदा कृषि और पट्टे पर भूमि देने को बढ़ाबा दिया जाना सार्थक साबित होगा। लेकिन इसे कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है।       संविदा कृषि और पट्टे पर कृषि से किसानों पर पड़नेवाले सकारात्मक और नाकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं :- (क) सकारात्मक प्रभाव :- जैसा कि स्पष्ट है जोत छोटा होने से लगत बढ़ती जा रही है। इस समस्या का समाधान संविदा और पट्टे पर कृषि करने से हो जाती है।  जो लोग ऐच्छिक रूप से कृषि नहीं कर रहे हैं वे बेहतर अवसर की तलाश करेंगे और अतिरिक्त लाभ कमा सकेंगे। संविदा कृषि होने से भूमि का एक भड़ा हिस्सा जो खेतों की आड़ के रूप में होता है कृषि उपयोग में आ जाएगा।  सरकार को इस तरह की खेती से प्रबंधन के स्तर पर लाभ मिल सकेगा।...