गाँधी के चम्पारण सत्याग्रह शताव्दी के क़रीब

चम्पारण
सत्याग्रह की धटना भले हीं वर्षों पुरानी हो गई है लेकिन उसकी यादें चम्पारण के
लोगों के जेहन से आज भी नहीं मिट पाई है। भले ही गाँधी जी गुजराती थे लेकिन चम्पारण के लोग उन्हें
आज भी मसीहा की तरह पूजते हैं। कुछ लोग तो वहाँ गाँधी जी को भगवान की तरह मानकर उनकी
विधिवत् पूजा-अर्चना और आराधना तक करते हैं। जिसमें मोतिहारी के गाँधी भक्त
तारकेश्वर प्रसाद का नाम अग्रणी है जो केवल गाँधी जी का मंदिर बनाकर सुबह-शाम विधिवत् पूजन और
प्रसाद वितरण ही नहीं करते हैं अपितु उनके जन्म दिन के अवसर पर 2 अक्टूबर को विशाल यज्ञ का भी आयोजन
करते हैं और पूरे जिले के गाँधीवादियों को आमंत्रित करते हैं। साथ ही गाँधी जी के प्रति लोगों की आस्था का
अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि गाँधी जी के समानों को आज तक वहाँ के लोग सम्भाल
कार रखे हैं। चम्पारण में गांधी जी जहां-जहां रहे उसे
ऐतिहासिक स्थल बनाया
गया है। मोतिहारी में गाँधी जी जिस तात्कालिक अँग्रेजी सब
डिविजनल ऑफिसर की कचहरी में हाजिर हुए थे, आज उस स्थल पर 'गांधी स्मारक संग्रहालय' नाम से एक सुंदर यादगार और
ऐतिहासिक स्थल बनाया गया है। गाँधीजी की पुरानी धोती और खड़ाऊ भी आज तक चम्पारण
के लोग सम्भाल कर रखे हैं।
लोकिन आजीब बात यह है कि आज जहाँ चम्पारण की जनता गाँधी जी के यादों को संजोए रखी है, वही दूसरी तरफ़ सरकार उसे हमेशा नजरअंदाज करती रही है। मोतीहारी के गाँधीवादी विचारक प्रो. राम निरंजन पांडेय कहते हैं कि चम्पारण सत्याग्रह सफल होने के बाद चम्पारण की शिक्षा में सुधार के उद्देश्य से गाँधी जी चम्पारण में एक साथ तीन-तीन बुनियादी विद्यालयों की स्थापना किए बड़हरवा
भीतहरवा और मधुबन। आज यह तीनों विद्यालय बदहाल अवस्था में हैं।
सरकार भले गांधी की ढ़ोल पीटती है लेकिन कभी इसपर ध्यान नहीं देती। उधर गाँधी
स्मारक संग्रहालय के सचिव और मधुबनी खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष ब्रजकिशोर सिंह
कहते हैं कि 1934 में जब
देश में भयानक अकाल की समस्या आई तो गाँधी जी ने एक रिलीफ कमिटी बनाई और तीन महीने
तक लोगों को मुफ्त भोजन कि व्यवस्था कराए। स्थाई समाधान के लिए वे मधुबनी खादी
ग्रामोद्योग कि स्थापना किए। जिसमें गांधी ने गुजरात के प्रसिद्ध बुनकर मथुरा भाई
को बुलाकर बुनाई का काम शुरु कराया। यहाँ पर विश्व प्रशिद्ध मूंगा खादी के कपड़े
भी बनते थे। लेकिन आज सरकार के उपेक्षा के कारण आज यह मृत-प्राय हो रहा हैं। इससे
जुड़े दर्जनों कारीगरों के सामने भुखमरी की समस्या बनी हुई हैं। लोग इसे अपने
प्रयास से जिंदा रखे है लोकिन जल्द ही इसका निदान नहीं किया गया तो गाँधी की ये
धरोहरें हमेशा के लिए दम तोड़ देगीं।

लोकिन आजीब बात यह है कि आज जहाँ चम्पारण की जनता गाँधी जी के यादों को संजोए रखी है, वही दूसरी तरफ़ सरकार उसे हमेशा नजरअंदाज करती रही है। मोतीहारी के गाँधीवादी विचारक प्रो. राम निरंजन पांडेय कहते हैं कि चम्पारण सत्याग्रह सफल होने के बाद चम्पारण की शिक्षा में सुधार के उद्देश्य से गाँधी जी चम्पारण में एक साथ तीन-तीन बुनियादी विद्यालयों की स्थापना किए बड़हरवा


भारत के इतिहास में गाँधी जी ही ऐसे नेता रहे जो देश की आखिरी जनता तक गए।


आज भी तुरकौलिया के किसान मजदूरों के घर-घर में गांधी जी के फोटो लगे हैं। लोग गर्व से कहते हैं, गाँधी जी मेरे घर आए थे। चम्पारण का सत्याग्रह गाँधी जी की पहली लड़ाई थी। वहीं से गाँधी जी को भारत में एक करिश्माई नेता की पहचान मिलीं। चम्पारण के सत्याग्रह से ही उत्साहित होकर गाँधी जी लड़ाई के मैदान में प्रवेश किए। लेकिन चम्पारण सत्याग्रह के लिए गाँधी जी की कोई योजना थी नहीं और न ही कोई इच्छा थी। मोतिहारी के ठेठ देहाती किसान राजकुमार शुक्ल की

राजकुमार शुक्ल मोतिहारी के मध्यमवर्गीय किसानों में से एक थे। नीलहें सरकार के अत्याचार से तंग होकर 1916 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उस समय के बड़े-बड़े नेताओं से सहयोग मांगने गए। उस समय कांग्रेस पार्टी सिर्फ धनी और पढ़े-लिखे की पार्टी थी। उसमें पहली बार एक मध्यम वर्गीय किसान ने भाग लिया था। कांग्रेस के मंच से उन्होंने पड़ोसी बिहार के चम्पारण में नीलहे साहबों का शोषण और उत्पीड़न की रोंगटे खड़े करनेवाली कहानी सुनाई। वहां मौजूद सभी बड़े-बड़े नेताओं ने सहानुभूति जताई पर कोई चम्पारण आने को तैयार नहीं हुआ। बड़े-बड़े नेता चम्पारण की छोटी लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे।
शुक्ल जी लोकमान्य तिलक से भी काफी आग्रह किए। उसके बाद मदनमोहन मालवीय के पास गए। मालवीय जी ने गाँधी जी को बुला ले जाने का सलाह दी।
शुक्ल जी गाँधी जी के पास गए लेकिन गाँधी जी उस समय तैयार नहीं हुए।गाँधी जी ने कानपुर में विषेश काम करने के बहाने उन्हें लौटा दिया। फिर भी शुक्ल जी हिम्मत नहीं हारे। गाँधी जी जब कानपुर पहुंचे उससे पहले ही शुक्ल जी गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्रिका “प्रताप” के कर्यालय में जा बैठे थे। तब भी गाँधी जी आने को तैयार नहीं हुए। उसके बाद उन्होंने कहा कि वे केलकाता जा रहे है पहुंचने पर कोई निर्णय लेंगे। फिर गाँधी जी जब कोलकाता पहुंचे उससे पहले ही शुक्ल जी वहां डेरा डाले थे। काफी आग्रह के बाद शुक्ल जी वहां से गाँधी जी को चम्पारण लाए। शुक्ल जी के इस गुनाह के लिए अंग्रेजों ने उनके घर में आग लगा दी।
गाँधी जी के चम्पारण पहुंचते ही उनकी कठिन परीक्षा शुरु हो गई। गाँधी जी को भोजपुरी बिल्कुल समझ में नहीं आती थी और किसान हिंदी नहीं बोल पाते थे। इसलिए शुक्ल जी दुभाषिया का काम करते और साथ ही गाँधी जीको चम्पारण की

गाँधी जी ने एस डी ओ मिस्टर जार्ज चन्दर के सामने अपना व्यक्तव्य पढ़ा तो वह सुनकर आवाक् रह गया। बिना कोई कानूनी दलील दिए उन्होंने कहा वह सत्य जानने आए है और जानने के बाद ही अपना अगला कदम बढ़ाएंगे। अगर सरकार जबर्दस्ती जिले से बाहर फेंक देगी तब भी वह फिर वापस आ जाएंगे। यह सब सुनते ही वहाँ के लोगों और वकीलों के होश उड़ गए। सबको उम्मीद थी की विदेश से बैरिस्टरी कर के आनेवाला आदमी कानून की दलीलें दे-देकर एस डी ओ की धज्जियां उड़ा देगा। गाँधी जी को सलाह मशवरा देने वाले वकील भी देखकर चकित

चम्पारण में गाँधी जी का सत्याग्रह रामवाण साबित हुआ। अंग्रेजों के सदियों के दमन के खिलाफ जहां कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था वहीं गाँधी जी ने सरकार को कई मुद्दों पर सुधार करने के लिए मजबूर कर दिया। आकाल के समय गरीब किसानों को अपने जीवित रहने के लिए खाद्य फसलों की जरुरत थी लेकिन अंग्रेज जबर्दस्ती तीन कठिया प्रथा बनाकर नील की खेती करवाते थे। साथ ही पैदवार का भी कम मूल्य देते थे। गाँधीजी नीलहें सरकार की इस शोषणकारी नीति को हटाने के

चम्पारण सत्याग्रह की सफलता से प्रभावित होकर गाँधी जी अन्य सभी आंदोलनों में अहिंसक सत्याग्रह का प्रयोग करने लगे। अगले वर्ष 1918 में गाँधी जी गुजरात के


चम्पारण सत्याग्रह भारत ही नहीं विश्व के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घंटा है।

आज भी चम्पारण के लोग इसपर गर्व करते है। वहां के युवकों का मानना है कि उनके रोम-रोम में गाँधी और सत्याग्रह बसा है। आज भी वे महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय की मांग को लेकर मोतिहारी से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक सत्याग्रह किए और सत्याग्रह के बल पर सरकार से अपनी मांगे पूरी करवाए। चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष को लेकर वे लोग काफी उत्साहित है। उपराष्ट्रपति को

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