छोटे शहरों के बड़े वैज्ञानिक हैं अंकुर
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर विशेष
देश के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जब उससे मिले तो एकटक देखते रह गए। उस नवयुवक के असाधारण प्रतिभा को देखकर आश्चर्यचकित कलाम के मुँह से निकला “आई पाउड ऑफ यू”। वह नवयुवक बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मोतिहारी चाणक्यपुरी का रहनेवाला अंकुर अरमान है। एक मध्यम वर्गीय परिवार का यह लाल एक से एक अविष्कार कर माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को भी आश्चर्यचकित कर चुका है।
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छोटी उम्र से ही बड़ा काम करनेवाले
अंकुर ने एकबार फिर अंडर ग्रेजुएट होकर भी
ग्रेजुशन के लिए किताबें लिखकर सबको
आश्चर्य चकित कर दिए। पटना कॉलेज पटना में बीसीए में पढ़ाई करते समय उन्होनें पाया सभी
विद्यार्थियों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग समझने में काफी दिक्कत हो रही है। इस
कठिन पढ़ाई को आसान बनाने के लिए अंकुर प्रोग्रामिंग कि एक-एक चरण पूरा करते गए और
उसे लिखते गए। सरल भाषा में लिखी अंकुर कि “प्रोग्रामिंग एट द स्पीड ऑफ माइन्ड” पुस्तक इतनी उपयोगी
हो गई कि पटना युनिवर्सिटी से लेकर गुजरात के एनआईआरएमए सहित कई युनिवर्सिटी के
ग्रेजुएशन में पढ़ाई जाने लगी।
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अंकुर के पिता प्रो.राधाकांत तिवारी
अंकुर के बचपन की कहानियाँ सुनाते हुए बताते
हैं कि अंकुर के दिमाग में जब भी कोई
आडिया आता है तभी वह काम करना शुरु कर देते हैं। बचपन से ही हर असंभव को संभव कर
दिखाना उनका सिलसिला हो गया है। इसी की उपज है कि एक बार अंकुर जब मोबाइल फोन पर
बार कर रहे थे तभी दूसरी ओर से मोबाइल का कोई बटन दबने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज
सुनते ही लखनऊ में सफर कर रहे अंकुर के दिमाग में वही से घर के पंखे टीवी ऑन-ऑफ
करने का आइडिया आया। दिमाग में यह आइडिया आते ही अंकुर ने अपनी खोज शुरु कर जल्द ही
मोबाईल से यह अविष्कार कर दिखाया। वैसे तो इसकी सुरुआत रिमोट से हो चुकी है। लेकिन
रिमोट मात्र तीन किलोमीटर दूरी से ही काम कर सकता है जबकि अंकुर का मोबाईल रिमोट
दूर कही तक काम कर सकता है।
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सबसे आश्चर्य तो लोगो को तब हुई जब
अंकुर के घर एक नन्हा सा अजनबी
मेहमानों को चाय दे रहा था। अंकुर की मां रीता
तिवारी को खुशी से लोगों को बताते हुए आंखे भर आई थी कि उनके घर का यह अजनबी “रोबोट” है। जिसे उनका बेटा दिनरात की मेहनत
से बनाया है। अंकुर इस रोबोट को बनाने के लिए एक लाख बीस हजार का लोन बैंक ऑफ
बड़ौदा से लिए और देश का कोना-कोना छान मारा। फरीदाबाद, न्यूयार्क और जापान
से रोबोट की बॉडी मंगाई। तकनीकी ज्ञान हासिल करने के लिए बंग्लोर, दिल्ली, कोलकता, और अहमदाबाद
गए फिर प्रोग्रामिंग गुरु अपने प्रोग्रामिंग को रोबोट में डालकर रोबोट तैयार किया। रोबोट बनाने के लिए सरल भाषा में
रोबोट एट स्पीड ऑफ द माइन्ड किताब भी लिखी और छा गए देश दुनिया के खबरों में।
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लेकिन आज जिस अंकुर को अपने आप में
विश्वास है वह बचपन में तंत्र-मंत्रों के
अंधविश्वास में खोए रहते थे। अपने उन
दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं कि तंत्र-मत्रों को जानने का जूनून उनपर इतना
सवार था कि वे रात के अंधेरे में शमशान जाया करते थे। लेकिन सबसे बड़ा झटका उन्हें
तब लगा जब रविन्द्रनाथ टैगोर की नोवेल मेडल चोरी हो गई थी। अंकुर अपने गुरु और
प्रसिद्ध ज्योतिषी नारायणदास श्रीमाली से मंत्रों से मेडल वापस लाने का आग्रह
किया। स्वयं भी मंत्रों से वापस लाने का प्रयास किया लेकिन सब निष्फल था। तब अंकुर
की उम्मीदों को गहरा धक्का लगा और उनकी जीवन दिशा ही बदल गई। उन्हें अपने आप पर
विशवास जगा और तब से जीवन में आगे बढ़ते गए ही गए कभी घबराए नहीं।

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अंकुर अपने जीवन का हर पल सामाज की
सेवा में समर्पित कर देना चाहते हैं।
आज जहाँ प्रोग्रामिंग की पुस्तक बाजार में 500
रुपये से अधिक में बिकती है वही अंकुर की सरल और उपयोगी पुस्तक मात्र 150 रुपये
में ही बिकती है। देश की शिक्षा व्यवस्था से निराश होकर अंकुर कहते हैं कि यहाँ
शिक्षा पर भी अमीरों का ही कब्जा है इसलिए वे अपनी पुस्तक को गरीब और कमजोर बच्चों
को समर्पित कर दिए है। अंकुर छोटे शहरों के गरीब बच्चों में वैज्ञानिक जागरुकता
लाना चाहते हैं। इतना ही नहीं वे एनजीओ में भी छाये भ्रष्टटाचार से क्षुब्ध है।
इसलिए वे एनजीओ से मिले 25 करोड़ के ऑफर को ठुकरा दिए। अंकुर स्व प्रयास से ही इस
कार्य में जुटे हैं।
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Comments
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कोशिश की हूं...विज्ञान दिवस के अवसर पर गांवों की छुपी हुई प्रतिभावों को भी उजागर कर सकूं....
बहुत अच्छा प्रयास है आपका किरण ... ईश्वर आपके पवित्र उदेश्य में आपको सफलता प्रदान करे और आपको इतना आत्म-विश्वास से भर दे कि आपके जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अवरोध या समस्या उत्पन्न न हो...आप आईएसआई तरह छुपी हुई प्रतिभावोन को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाती रहें ...हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं...