छोटे शहरों के बड़े वैज्ञानिक हैं अंकुर


राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर विशेष

देश के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जब उससे मिले तो एकटक देखते रह गए। उस नवयुवक के असाधारण प्रतिभा को देखकर आश्चर्यचकित कलाम के मुँह से निकला आई पाउड ऑफ यू। वह नवयुवक बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मोतिहारी चाणक्यपुरी का रहनेवाला अंकुर अरमान है। एक मध्यम वर्गीय परिवार का यह लाल एक से एक अविष्कार कर माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को भी आश्चर्यचकित कर चुका है।


कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग पर किताब लिखनेवाला विश्व का पहला अंडर ग्रेजुएट के नाम से जाने जानेवेले अंकुर बचपन से ही काफी होनहार हैं। जब वे 14 वर्ष के थे तभी एक ट्रांसमीटर का अविष्कार किए और आसपास के क्षेत्रों में एफएम रेडियों का प्रसारण शुरु कर दिए। लेकिन यह एफएम रेडियों उम्र की लिहाज और पैसों के आभाव के कारण रजिस्टर्ड नहीं हो सका। जिससे उन्हें एफएम रेडियो का प्रसारण बंद करना पड़ा। निश्चय ही वह समय अंकुर को हतोत्साहित करने वाला था। लेकिन उन्होनें कभी हार नहीं मान आगे बढ़ते ही गए।


छोटी उम्र से ही बड़ा काम करनेवाले अंकुर ने एकबार फिर अंडर ग्रेजुएट होकर भी ग्रेजुशन के लिए किताबें लिखकर सबको आश्चर्य चकित कर दिए। पटना कॉलेज पटना में बीसीए में पढ़ाई करते समय उन्होनें पाया सभी विद्यार्थियों को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग समझने में काफी दिक्कत हो रही है। इस कठिन पढ़ाई को आसान बनाने के लिए अंकुर प्रोग्रामिंग कि एक-एक चरण पूरा करते गए और उसे लिखते गए। सरल भाषा में लिखी अंकुर कि प्रोग्रामिंग एट द स्पीड ऑफ माइन्ड पुस्तक इतनी उपयोगी हो गई कि पटना युनिवर्सिटी से लेकर गुजरात के एनआईआरएमए सहित कई युनिवर्सिटी के ग्रेजुएशन में पढ़ाई जाने लगी।


अंकुर की यह समझ सिर्फ कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग पर किताब लिखने तक ही सीमित नहीं रही। उन्होनें अपनी इस समझ से कई आश्चर्यजनक कार्यो को अंजाम देते जा रहे हैं। फिलिपिंस की बामुमबयान क्विजोन की संस्था एजुकेशन फॉर यू को अपने वेबसाइट टीसीएचईडीएनईसीएक्सटी डॉट कॉम के माध्यम से अंकुर ने 30,000 सवालो के जबाब दिए। जिससे एक छोटे से शहर में पढ़ने वाले इस छात्र ने दूनिया के सभी रिकॉर्ड तोड़ संस्था के सम्मान के हकदार बने ।


अंकुर के पिता प्रो.राधाकांत तिवारी अंकुर के बचपन की कहानियाँ सुनाते हुए बताते हैं कि अंकुर के दिमाग में जब भी कोई आडिया आता है तभी वह काम करना शुरु कर देते हैं। बचपन से ही हर असंभव को संभव कर दिखाना उनका सिलसिला हो गया है। इसी की उपज है कि एक बार अंकुर जब मोबाइल फोन पर बार कर रहे थे तभी दूसरी ओर से मोबाइल का कोई बटन दबने की आवाज सुनाई दी। यह आवाज सुनते ही लखनऊ में सफर कर रहे अंकुर के दिमाग में वही से घर के पंखे टीवी ऑन-ऑफ करने का आइडिया आया। दिमाग में यह आइडिया आते ही अंकुर ने अपनी खोज शुरु कर जल्द ही मोबाईल से यह अविष्कार कर दिखाया। वैसे तो इसकी सुरुआत रिमोट से हो चुकी है। लेकिन रिमोट मात्र तीन किलोमीटर दूरी से ही काम कर सकता है जबकि अंकुर का मोबाईल रिमोट दूर कही तक काम कर सकता है। 

सबसे आश्चर्य तो लोगो को तब हुई जब अंकुर के घर एक नन्हा सा अजनबी मेहमानों को चाय दे रहा था। अंकुर की मां रीता तिवारी को खुशी से लोगों को बताते हुए आंखे भर आई थी कि उनके घर का यह अजनबी रोबोट है। जिसे उनका बेटा दिनरात की मेहनत से बनाया है। अंकुर इस रोबोट को बनाने के लिए एक लाख बीस हजार का लोन बैंक ऑफ बड़ौदा से लिए और देश का कोना-कोना छान मारा। फरीदाबाद, न्यूयार्क और जापान से रोबोट की बॉडी मंगाई। तकनीकी ज्ञान हासिल करने के लिए बंग्लोर, दिल्ली, कोलकता, और अहमदाबाद गए फिर प्रोग्रामिंग गुरु अपने प्रोग्रामिंग को रोबोट में डालकर रोबोट तैयार किया। रोबोट बनाने के लिए सरल भाषा में रोबोट एट स्पीड ऑफ द माइन्ड किताब भी लिखी और छा गए देश दुनिया के खबरों में।

 
लेकिन आज जिस अंकुर को अपने आप में विश्वास है वह बचपन में तंत्र-मंत्रों के अंधविश्वास में खोए रहते थे। अपने उन दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं कि तंत्र-मत्रों को जानने का जूनून उनपर इतना सवार था कि वे रात के अंधेरे में शमशान जाया करते थे। लेकिन सबसे बड़ा झटका उन्हें तब लगा जब रविन्द्रनाथ टैगोर की नोवेल मेडल चोरी हो गई थी। अंकुर अपने गुरु और प्रसिद्ध ज्योतिषी नारायणदास श्रीमाली से मंत्रों से मेडल वापस लाने का आग्रह किया। स्वयं भी मंत्रों से वापस लाने का प्रयास किया लेकिन सब निष्फल था। तब अंकुर की उम्मीदों को गहरा धक्का लगा और उनकी जीवन दिशा ही बदल गई। उन्हें अपने आप पर विशवास जगा और तब से जीवन में आगे बढ़ते गए ही गए कभी घबराए नहीं।


आज अंकुर एक अच्छे वैज्ञानिक तो हो ही गए है साथ ही वे अच्छे लेखक भी हैं। प्रोग्रामिंग एट स्पीड ऑफ माइन्ड और रोबोट एट स्पीड ऑफ माइन्ड पुस्तक लिखने के बाद उन्होंने अगली पुस्तक वेब डिजाइनिंग लिखी है। इस पुस्तक का प्रकाशन जागृति पब्लिकेशन ने किया है। इसका विमोचन अंकुर मार्च में पटना के पुस्तक मेले के दौरान करनेवाले हैं। इसके साथ ही अंकुर की अगली योजना है मोबाईल से कार को कंट्रोल करना।


अंकुर अपने जीवन का हर पल सामाज की सेवा में समर्पित कर देना चाहते हैं। आज जहाँ प्रोग्रामिंग की पुस्तक बाजार में 500 रुपये से अधिक में बिकती है वही अंकुर की सरल और उपयोगी पुस्तक मात्र 150 रुपये में ही बिकती है। देश की शिक्षा व्यवस्था से निराश होकर अंकुर कहते हैं कि यहाँ शिक्षा पर भी अमीरों का ही कब्जा है इसलिए वे अपनी पुस्तक को गरीब और कमजोर बच्चों को समर्पित कर दिए है। अंकुर छोटे शहरों के गरीब बच्चों में वैज्ञानिक जागरुकता लाना चाहते हैं। इतना ही नहीं वे एनजीओ में भी छाये भ्रष्टटाचार से क्षुब्ध है। इसलिए वे एनजीओ से मिले 25 करोड़ के ऑफर को ठुकरा दिए। अंकुर स्व प्रयास से ही इस कार्य में जुटे हैं।



अंकुर के करीबी रिश्तेदार विनय कुमार उपाधायाय अंकुर के कार्यों कि प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि अंकुर देश का धरोहर है। एक छोटे से शहर में जहाँ कम्प्यूटर चलाना अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है ऐसी परिस्थिति में रहनेवाला महज 22 वर्ष के इस युवक का कार्य सबको आश्चर्यचकित करनेवाला है। यूं तो कलाम और बिल गेट्स कितनी प्रतिभाओं की सराहना किए होंगे लेकिन अंकुर की सराहना वास्तव में लाजिमी है।

Comments

akash said…
Interview ko behtarin tarike se panno par...sorry blog me ukera hai..
www.jeevanmag.tk
Kiran Kumari said…
आकाश बाबू... प्रोत्साहन भरा टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
कोशिश की हूं...विज्ञान दिवस के अवसर पर गांवों की छुपी हुई प्रतिभावों को भी उजागर कर सकूं....
Unknown said…
किसी की आलोचना करना बहुत आसान है, प्रशंसा करने के लिए जि़गर होना चाहिए ...
बहुत अच्छा प्रयास है आपका किरण ... ईश्वर आपके पवित्र उदेश्य में आपको सफलता प्रदान करे और आपको इतना आत्म-विश्वास से भर दे कि आपके जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अवरोध या समस्या उत्पन्न न हो...आप आईएसआई तरह छुपी हुई प्रतिभावोन को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाती रहें ...हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं...

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