नूरी से चमकी विज्ञान की चमक

विज्ञान दिवस पर विशेष

इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर सजी-धजी नूरी की सवारी दिखीं। सबकी नजरें उसी पर टिकी रही। नूरी बकरी की सजावट और कलाकृति ऐसी थी मानो पशमीना बकरी ही 26 जनवरी का परेड देखने आई हो। जम्मू कश्मीर की यह आश्चर्य जनक झांकी तब और भी आश्चर्य जनक हो गई जब लोगों ने जाना कि यह समान बकरी कि कलाकृति नहीं बल्कि पशमीना बकरी की क्लोन नूरी की कलाकृति है। जम्मू कश्मीर ने अपनी झांकी में विज्ञान का यह अनोखा नजारा दिखा कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया है।


नूरी का जन्म पिछले साल ही 9 मार्च को हुआ है। लेकिन क्लोन बनाने की कला एक दशक पहले ही हासिल की जा चुकी है। 1996 में स्कॉटलैंड में पहला क्लोन डॉली भेड़ से बनाई गई है। उसके 6 वर्ष ही बाद भारत के वैज्ञानिकों ने भी क्लोन बनाने सफलता हासिल कर ली। 2003 में भारत में भैंस का पहला क्लोन गरिमा बनाया गया है। लेकिन 26 जनवरी के परेड में नूरी को शामिल कर पहली बार क्लोंन विज्ञान को अद्वितीय पहचान दिया गया है। गणतंत्र दिवस पर नूरी क्लोन विज्ञान की अदभूत देन है।



एक ओर नूरी से पशमीना ऊन के उत्पादन का भविष्य चमका है तो दूसरी ओर विलुप्त हो रहे जीवों को भी बचाने की उम्मीद जगी है। जम्मू कश्मीर में पशमीना बकरियों की संख्या लगातार घट रही हैं। यह पिछले कुछ वर्षों से चिंता का मुख्य विषय बना हुआ है। नूरी को बनाने वाले शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय श्रीनगर के वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लोनिंग विलुप्त हो रहे प्रजातियों के संरक्षण को प्रोत्साहित किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससेहिमालय की विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाया जा सकेगा। विलुप्त हो रहे जीवों जैसे गिद्ध, हंगुल, कस्तुरी हिरण, तिब्बती मृग या जलपक्षी को बचाने में यह कारगर साबित होगा। इससे जैव विविधता पर मंडरा रहे खतरे से निपटने का एक अच्छा संकेत मिला है।



क्लोनिंग वैज्ञानिकों का दूसरा दावा है कि पश्मीना बकरी के क्लोन से बेशकीमती पश्मीना ऊन की प्राप्ति होगी। जिससे विश्व प्रसिद्ध पश्मीना सॉल के करोबार को लाभ मिलेगा। पिछले कुछ सालों से पशमीना बकरियों के कमी के कारण पशमीना सॉल का उद्योग काफी प्रभावित हुआ है। बकरियों के बाल के कमी के कारण पशमीना कारीगरों का रोजगार दिन पर दिन कम होता जा रहा है। नूरी पशमीना कारीगरों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। साथ ही साथ पश्मीना सॉल पसंद करनेवालों के लिए भी खुशखबरी है। पिछले कुछ सालों से पशमीना बकरियों के कमी के कारण पशमीना सॉल के उत्पादन पर भी इसका काफी बूरा असर पड़ा है। जिससे धीरे-धीरे पश्मीना सॉल बाजार से गायब होते जा रहे है। लेकिन नूरी के बन जाने से पशमीना सॉल चाहने वाले को भी खुशी मिलीं है।



कहा जाता रहा है कि जीवन और मौत ईश्वर के हाथ में है। लेकिन क्लोंन विज्ञान ने इस मिथक को तोड़ दिया। चार वैज्ञानिको की टीम ने दो साल की कड़ी मेहनत कर नूरी को बनाया। इसमें राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान कारनाल के एसोसिएट प्रोफेसर रियाज अहमद शाह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। डा. रियाज अहमद शाह भारत की पहली क्लोन गरीमा के निर्माता है। नूरी को बनाने में धन की भी काफी खर्च हुई है। इसके लिए धन विश्व बैंक ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कृषि नवाचार परियोजना की तहत दिया है।


नूरी की जन्म की कहानी भी काफी अजीबो-गरीब है। जन्म देनेवाली मां हमेशा एक होती है लेकिन नूरी को जन्म देनेवाली तीन माताएं है। वैज्ञानिकों ने कुदरत से भी अजीब खेल खेला है। एक मां से अंडा दूसरी से डीएनए लेकर तीसरी मां के अंडाशय में प्रत्यारोपित कर नूरी को पैदा किया है। विश्व की पहली क्लोन डॉली को बनाने में भी इसी प्रक्रिया का प्रयोग हुअ था।



एक ओर जहां वैज्ञानिकों ने दावा कि नूरी पशमीना के कारीगरों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। वहीं श्रीनगर के पशमीना सॉल के दर्जनों कारोबारी इसे कोई बड़ी खुशखबरी नहीं मानते। उनका कहना है कि एक नूरी के बन जाने से क्या होगा। क्लोन बनाने की जटिल प्रक्रिया और उसके भारी खर्च को देखते हुए उन्हें इसपर कोई भरोसा नहीं है। लेकिन भले ही क्लोन विज्ञान की यह उपलब्धि तुरंत प्रत्यक्ष रुप से कोई लाभ नहीं पहुँचा सके लेकिन इससे हमारे आनेवाले भविष्य में एक नई उम्मीद जगी है। नूरी जीव विज्ञान में एक बहुत बड़ी सफलता है। 26 जनवरी के दिन पूरे देशवासियों ने नूरी को सम्मान देकर विज्ञान को सम्मानित किया है।

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