“शहरों में एकहन गो लोग अइसन होला“
गला
रुधती ही जा रही थी, आंखों से आंसू गिरने ही वाला था, किसी तरह
आंसुओं को
रोकते हुए मैंने कुछ शब्द कहा। आज आई0 आई0 एम0 सी0 के आखिरी दिन अपने
गुरुजनों और दोस्तों के बारे में मैं शब्दों में वयां नहीं कर सकती। गांव
छोड़ते वक्त सोची नहीं थी दिल्ली में भी मुझे एक घर मिल जाएगा। जहां से बिछड़ते वक्त मुझे रोना पड़ेगा। एक अविभावक की तरह स्नेह लुटाने वाले आनंद प्रधान
सर से जब पहली बार इंटरव्यू में मिली थी तब से ही एक रिश्ता जुड़ गया था।
डरते-डरते मैं इंटरव्यू कक्ष में घुसी थी, डर के मारे शुद्ध से बोल नहीं पा
रही थी लेकिन सर के अपनापन भरे शब्द और मुस्कुराहट ने मुझे ताकत दी और तब
मैं बोलना शुरु की। मैं अपने घर जाकर दादाजी को बताई। पहली बार मेरे दादाजी
किसी शहरी आदमी के बारे में संतोष से बोले थे-
“शहरों में एकहन गो लोग अइसन होला“ । शहरों के खौफ से डरे रहनेवाले मेरे
दादाजी मुझे शहर किसी भी हालत में भेजने को तैयार नहीं थे। लेकिन शायद इसी
बात का प्रभाव था कि मेरे दादाजी मुझे आई0 आई0 एम0 सी0 में नामांकन लेने से
नहीं रोके। मेरे पास कुछ कर गुजरने का जुनून तो था लेकिन साहस नहीं
था। सर क्लास में भी और क्लास के बाहर भी मेरे हौसले को बढ़ाते रहे। आज
क्लास के आखिरी दिन ऐसे लगा जैसे सर से ममता का साया छूट रहा है।

इससे पहले मुझे कभी शिक्षकों का कभी इतना स्नेह पाने का सौभाग्य

मुझे समझ में नहीं आता कि आई0 आई0 एम0 सी0 यहां के लोगो को

यहां तक कि मेस में खाना परोसने वाले भैया भी अपने काम के लिए

आई0 आई0 एम0 सी0 में हिन्दी, अंग्रेजी, रेडियो टीवी और विज्ञापन-
जनसंपर्क का डिपार्टमेंट बंटा हुआ है। यहां अलग-अलग सभ्यता संकृति के लोग हैं।
लेकिन सभी का राग एक है। अंग्रेजी कमजोर होने के कारण मैं विज्ञापन
जनसंपर्क की किताबें नहीं पढ़ पाती थी। विज्ञापन-जनसंपर्क मुझे थोड़ा भी
समझ में नहीं आता था। लेकिन कृष्णा मैम और नरेन सर के सहयोग से मैं सबकुछ
समझने लगी। कृष्णा मैम मेरे लिए अलग से हिन्दी में नोट्स उपलभब्द कराई।
रेडियों टीवी के राशिद सर और राघवचारी सर न्यूज पैकेज लिखना सिखाने के लिए
अलग से घंटों समय दिए। यहां पढ़ाने आनेवाले गेस्ट फैकल्टी भी हमारे सवालों
बौछार से उबने के बजाए खुश होकर हमारी जिज्ञासा को शांत करते थे। वे भले ही
गेस्ट बनकर आई0 आई0 एम0 सी0 में आते थे लेकिन मेल और फेसबुक पर हमेशा हमें सहयोग देते रहे है।
यहां सभी सर का इतने मेटेरियल्स देते कि मैं पढ़ते-पढ़ते उब जाती थी । भूपेन सर तो हमेशा पढ़ने के लिए कुछ न कुछ थमा ही देते। लेकिन याद है
मुझे जब मैं
हाईस्कूल में थी तो सहयोग के लिए जाती तो दुतकार भगा दिया जाता या जो थोड़ा
उदार थे संबंधित प्रश्न पुछते, नहीं आता तो यह कहते हुए भगा देते कि-“जब
पढ़ाया जाता है तो ध्यान नहीं देते बाद में पुछने चले आते हो”। शुरु-शुरु में मैं
इस व्यवस्था विरोध की लेकिन सवाल नहीं बताने के शर्म से और डर से सवाल
पूछना ही छोड़ दी। लेकिन यहां के सर जैसे मुंह में उंगली लगाकर बोलवाना
शुरु किए। आनंद सर हमेशा कहते सही या गलत कुछ भी बोलो, खूब लिखो। यहां आने
के बाद लगभग मरन्नासन में पड़ा मेरा हौसला बुलंद हुआ। मुझे दिल्ली में
दो-तीन राष्ट्रीय सेमिनारों में बोलने का मौका मिला मैं वहां जाकर फिर से
अपना परचम लहराना शुरु की। सच में मैं आई0 आई0 एम0 सी0 में आकर एक जिंदा दिल की जिंदा इन्सान बनी हूं।
आई0 आई0 एम0 सी0 से जाते-जाते मेरे दिल में एक ही कसक रह गई
है। मैं अपने
दोस्तों के लिए ज्यादा समय नहीं दे पाई। लेकिन मेरे दोस्त जब-जब मुझे जरुरत
हुई मेरा साथ दिए। क्वार्क एक्सप्रेस को कठिन समझकर मैं सिखना ही छोड़ दी
थी। लेकिन मेरी दोस्त सबा वकील ने
मुझे इतना आसान तरीकों से सिखाई की दो दिन की पढ़ाई में मैं अपने अखबार का
डिजायन करने लगी। हॉसटल में मौसमी, आरती, विनम्रता, किरण, आशा, कामिनी, यामिनी,
मनीषा, प्रियंका झा, प्रियंका, निशा, तेंजन, अपर्णा और प्रियंका गोस्वामी जैसे दोस्तों
ने कभी अकेला महसुस नहीं होने दिया। क्लास के लड़के भी पूरा-पूरा साथ देते।
आईआईएमसी मेरे लिए एक घर-सा बन गया था। इस गहरे रिश्ते को मैं छुपाए ही
रखना चाहती थी। लेकिन आज मेरी आंखें नहीं छुपा सकीं। काश! ऐसा होता कि आई0 आई0 एम0 सी0 हर जगह होता; हर जगह आनंद प्रधान सर, भूपेन सर, कृष्ण सर और आशीष सर होते; हर जगह ऐसे दोस्त मिलते।
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यहां सभी सर का इतने मेटेरियल्स देते कि मैं पढ़ते-पढ़ते उब जाती थी । भूपेन सर तो हमेशा पढ़ने के लिए कुछ न कुछ थमा ही देते। लेकिन याद है
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आई0 आई0 एम0 सी0 से जाते-जाते मेरे दिल में एक ही कसक रह गई
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Comments
उनको जीने के लिए सही एहसास होने चाहिए ..
काश!...
आई0 आई0 एम0 सी0 में जीने के इस अनोखे एहसास से मैं भी रु-ब-रु होती किरण दी...
यार हम सब खुशकिस्मत है कि हम तेरे जैसी लड़की से मिल पाए...सच में तेरी याद आएगी यार...जहां भी रहना सम्पर्क में रहना...हमारे दिल में तो हमेशा रहोगी :) :) :) :)
IAS ki tayari karne wala sansthan to nahi hai.