बिहार में दूसरे चरण का चुनाव : एक तरफ जीत बरकरार रखने की अग्निपरीक्षा तो दूसरी तरफ विरासत हासिल करने की चुनौती
लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को बिहार की पांच सीटों पर मतदान होगा। इसमें बांका, कटिहार, भागलपुर, पूर्णिया और किशनगंज संसदीय सीट शामिल है।
इन पांचों सीटों पर एक तरफ तो एनडीए का हिस्सा और भाजपा की सहयोगी जेडीयू के उम्मीदवार हैं तो दूसरी तरफ तीन सीटों (किशनगंज, कटिहार और भागलपुर) पर कांग्रेस और दो (बांका और पूर्णिया) पर राजद ने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में इन पांच में से एकमात्र किशनगंज सीट को छोड़कर अन्य चारों सीटों पर जेडीयू ने जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस एकमात्र सीट पर ही एनडीए को हार का मुंह देखना पड़ा था।
इन सभी चारों सीटों पर जेडीयू ने अपने पुराने चेहरे पर भरोसा करते हुए निर्वतमान सांसदों को ही टिकट दिया है।
भागलपुर में कांग्रेस और जेडीयू आमने-सामने
भागलपुर के चुनावी रण में एक ओर कांग्रेस प्रत्याशी और भागलपुर विधानसभा सीट से विधायक अजीत शर्मा हैं तो दूसरी ओर जेडीयू से मौजूदा सांसद अजय मंडल है।
कभी भागलपुर में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक था। लेकिन
1989 के दंगे ने भागलपुर से कांग्रेस का सफाया कर दिया। इस घटना के बाद यह पहला मौका है जब कांग्रेस प्रत्याशी सीधी लड़ाई में है।
एनडीए की बात करें तो 1998 से अब तक हुए सात चुनावों में चार बार बीजेपी और एक बार 2019 में जेडीयू को जीत मिलीं है। वही 1999 में भाकपा (मार्क्सवादी) और 2014 में राजद प्रत्याशी को जीत मिली थी।
भागलपुर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रैली अपनी विरासत वापस पाने की प्रबल इच्छा को दर्शाती है। वही एनडीए भी अपनी साख बचाएं रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहीं है।
पूर्णिया में त्रिकोणीय लड़ाई
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पूर्णिया लोकसभा सीट पर जेडीयू, राजद उम्मीदवार और निर्दलीय खड़े राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के बीच त्रिकोणीय लड़ाई है।
पूर्णिया संसदीय सीट पर पूर्व सांसद पप्पू यादव के निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है। पप्पू यादव तीन बार पूर्णिया से सांसद और एक बार विधायक रह चुके हैं। इस सीट से पप्पू यादव निर्दलीय खड़े हो कर भी चुनाव जीत चुके हैं।
वहीं जदयू के संतोष कुशवाहा तीसरी बार चुनावी मैदान में है। वे कांग्रेस प्रत्याशी उदय सिंह को 2014 और 2019 में मात देकर सांसद बनें। उदय सिंह 2004 और 2009 में भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए थे।
वहीं राजद ने बीमा भारती पर भरोसा जताया है। ये पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में रुपौली विधानसभा सीट से पांच बार विधायक रह चुकी हैं। जिसमें एक बार निर्दलीय, एक बार राजद और तीन बार जेडीयू के टिकट पर विधायक बन चुकी हैं।
पूर्णिया संसदीय सीट राजनीतिक ड्रामा का केंद्र बनी हुआ है। पप्पू यादव अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर यहां से इंडिया गठबंधन की ओर से चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे। लेकिन सीट बंटवारे में यह सीट राजद के खाते में चली गई। अब यहां लड़ाई दिलचस्प हो गई है।
बांका में राजद और जेडीयू आमने- सामने
बांका समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है। यहां अलग - अलग पार्टियों ने जीत दर्ज की है। जिसमें सबसे अधिक छह बार आम चुनाव और दो बार उप चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी।
वहीं दो बार 2004 और 2014 में राजद एंव दो बार 1999 और 2019 में जेडीयू ने जीत दर्ज की है। दो बार (एक बार आम चुनाव और एक बार उपचुनाव) में यहां निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी बाजी मारी है।
जेडीयू ने अपने मौजूदा सांसद गिरधारी यादव को दुबारा चुनाव में उतारा है। वही राजद ने 2014 में पार्टी के टिकट पर जीत चुके जयप्रकाश नारायण यादव को टिकट दिया है। ये 2019 के चुनाव में गिरधारी यादव को कड़ी टक्कर दे चुके हैं।
यहां यादव और राजपूत वोट सबसे अधिक है। दोनों ही कैंडिडेट यादव समाज के है। बीजेपी की मुस्लिम विरोधी छवि जहां राजद के लिए तो वही सवर्ण वोटों की लामबंदी जेडीयू के लिए बराबर फायदेमंद दिख रहे हैं। यहां इंडिया और एनडीए में कड़ी मुकाबला देखने को मिल सकता है।
किशनगंज में कांग्रेस चौका लगाने को तैयार
इंडिया गठबंधन में किशनगंज सीट कांग्रेस के खाते में है। पार्टी ने अपने मौजूदा सांसद मोहम्मद जावेद को दुबारा चुनावी मैदान में उतारा है।
वही एनडीए की ओर से जेडीयू चुनाव में है। जेडीयू ने यहां से मुजाहिद आलम को अपना उम्मीदवार बनाया है। यहां कुल 12 उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। एआईएमआईएम ने भी अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। इसके कारण यहां त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है।
यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां से एक बार बीजेपी को जीत मिली है। 1999 के त्रिकोणीय लड़ाई में बीजेपी के सैयद शहनवाज हुसैन सांसद बने थे। वही जेडीयू को यहां कभी जीत नसीब नहीं हुई है।
कटिहार में कांग्रेस और जेडीयू की टक्कर
एनडीए की ओर से यहां भी जेडीयू अपने पुराने चेहरे के साथ चुनाव में है। जेडीयू के मौजूदा सांसद दुलालचंद गोस्वामी ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के तारीक अनवर को पटखनी दी थी।
इंडिया गठबंधन से कांग्रेस ने भी अपने पूर्व प्रत्याशी तारिक अनवर पर भरोसा किया है। तारिक अनवर पांच बार सांसद रह चुके हैं। चार बार कांग्रेस के टिकट पर तो एक बार एनसीपी के टिकट पर इन्होंने जीत दर्ज की है।
मुस्लिम बहुल कटिहार में पिछले ढ़ाई दशक से बीजेपी का कब्जा है। हालांकि यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। , 1957 से अब तक हुए 16 चुनावों में से सात बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा ने जीत दर्ज की है।
इस बार कांग्रेस और तारिक अनवर दोनों के लिए अपनी खोई विरासत पाने की चुनौती है।
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