क्या जमुई में अर्चना रविदास एनडीए को दे रही कांटे की टक्कर?
लोकसभा चुनाव 2024: जाने संसदीय क्षेत्र जमुई का हाल
जमुई संसदीय सीट संरक्षित सीट है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को यहां चुनाव है।
एनडीए गठबंधन के लोजपा रामविलास के मुखिया चिराग पासवान यहां से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। इस बार यह सीट उन्होंने अपने जीजा अरुण भारती के लिए छोड़ दी है।
उनकी पार्टी जो कि एनडीए गठबंधन का हिस्सा है उसने अरुण भारती को यहां से उम्मीदवार बनाया है।
वही इस सीट पर इंडिया गठबंधन से राजद ने अर्चना रविदास को टिकट दिया है। अर्चना रविदास के पति मुकेश यादव राजद नेता है और पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं।
जमुई संसदीय सीट का इतिहास
जमुई संसदीय सीट पर अब तक मात्र आठ बार ही चुनाव हुए है। इसका कारण परिसीमन है। 1952 के चुनाव के बाद 1957 में यह विलोपित कर दिया गया। पांच साल बाद 1962 में यह दुबारा अस्तित्व में आया। 1977 में परिसीमन के बाद इसे फिर से विलोपित कर दिया गया। 30 साल बाद 2008 के परिसीमन से यह फिर से अस्तित्व में है।
2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से यहां एनडीए गठबंधन की पार्टियों का कब्जा रहा है। 2009 में जदयू के भूदेव चौधरी और 2014 के बाद से लगातार दो बार लोजपा रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान ने इस सीट पर जीत दर्ज की है। 1977 से पूर्व यहां 1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से भोला मांझी, वहीं 1952,1962 और 1967 में कांग्रेस के प्रत्याशियों का कब्जा रहा है।
चुनावी समीकरण
जमुई लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत छह विधानसभा सीटें हैं। जिसमें चार पर एनडीए गठबंधन का कब्जा है वहीं एक पर राजद और एक निर्दलीय के खाते में है।
जातीय समीकरण को देखें तो यहां यादव वोटर्स ज्यादा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यादव वोटर्स की संख्या तीन लाख के आसपास है। वही राजपूत दूसरे नंबर पर है। इनकी संख्या दो लाख से अधिक है।
जमुई में वैश्य दो लाख, मुस्लिम डेढ़ लाख, भूमिहार एक लाख और पासवान एक लाख के आसपास है। रविदास वोटर्स की संख्या 80 हजार से अधिक है। वही ब्राह्मण 50 हजार तो कायस्थ 30 हजार के करीब हैं।
चुनावी गणित क्या कहता है?
आंकड़ों के अनुसार एनडीए प्रत्याशी अरुण भारती मजबूत दावेदार लग रहे हैं लेकिन चुनावी मुद्दे अर्चना रविदास के पक्ष में दिख रहे हैं।
अर्चना रविदास जमुई जिले की बेटी हैं जिनकी शादी मुंगेर में हुई है। हमेशा से जमुई के सांसद बाहरी रहे हैं। इस बार अर्चना रविदास ने चुनाव को स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा बनाया हैं।
जातीय समीकरण की बात करें तो यदि अर्चना रविदास ने यादव और रविदास वोटों पर अपना प्रभाव बनाने में कामयाब रहीं तो उन्हें बीजेपी की मुस्लिम विरोधी छवि के कारण डेढ़ लाख मुस्लिम वोट भी उनके खाते में जाते दिख रहा है।
वही अरुण भारती के स्थानीय न होने के कारण वोटों का नुकसान हो सकता है। इसके साथ ही जमुई में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट मुद्दा बन रहे है।
हालांकि एनडीए यहां सवर्ण वोटों पर निशाना टिकाए है। ऐसे एनडीए के अरुण भारती और इंडिया गठबंधन की अर्चना रविदास के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।
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