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Showing posts from 2013

“मीडिया ही बचाएं इस खतरें से”

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पर्यावरण संरक्षण में मीडिया की भूमिका हालत यह है कि गंगा-यमुना भी मैली हो गई है , 27 प्रतिशत हवा प्रदूषित हो गया है , 20 प्रतिशत ध्वनि शोर बन गया है , अस्पतालों में 80 प्रतिशत लोग प्रदूषित जल से बीमार है। उसी प्रकार 15 से 20 प्रतिशत लोग दूषित हवा से बीमार है। ग्लोबल वार्मिंग और ध्वनि प्रदूषण का खतरा अलग से मंडरा रहा है। यह दौर पर्यावरण पर खतरा नहीं ब्लकि खतरे में जीवन का दौर है। हर ओर त्राहिमाम मचा है। लोगों की नजरें अब मीडिया पर टिकीं है। पर्यावरणविद् भी कह रहे है दृ “ लोकतंत्र का चैथा स्तम्भ मीडिया ही बचाएं इस खतरें से ” । पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत जून 1972 को स्टॉकहोम में इंदिरा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध वाक्य दृ “ गरीबी सबसे बड़ी प्रदूषक है ” से की। संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन से निकली यह धारणा आज भी मौजूद है। जंगल काटने और चुल्हे में आग जलाने के लिए गरीबों को पर्यावरण का प्रदूषक माना जाता है। लेकिन मार्च 1974 में उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा किया गया “ चिपको आंदोलन ” यह साबित करता है कि गरीब पर्यावरण के प्रदूषक नहीं है। दूसरी ओर आरोप-प्रत्या...

“शहरों में एकहन गो लोग अइसन होला“

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आई 0 आई 0 एम 0 सी 0 की अविस्मरणीय यादें ... गला रुधती ही जा रही थी, आंखों से आंसू गिरने ही वाला था, किसी तरह आंसुओं को रोकते हुए मैंने कुछ शब्द कहा। आज आई0 आई0 एम0 सी0 के आखिरी दिन अपने गुरुजनों और दोस्तों के बारे में मैं शब्दों में वयां नहीं कर सकती। गांव छोड़ते वक्त सोची नहीं थी दिल्ली में भी मुझे एक घर मिल जाएगा। जहां से बिछड़ते वक्त मुझे रोना पड़ेगा। एक अविभावक की तरह स्नेह लुटाने वाले आनंद प्रधान सर से जब पहली बार इंटरव्यू में मिली थी तब से ही एक रिश्ता जुड़ गया था। डरते-डरते मैं इंटरव्यू कक्ष में घुसी थी, डर के मारे शुद्ध से बोल नहीं पा रही थी लेकिन सर के अपनापन भरे शब्द और मुस्कुराहट ने मुझे ताकत दी और तब मैं बोलना शुरु की। मैं अपने घर जाकर दादाजी को बताई। पहली बार मेरे दादाजी किसी शहरी आदमी के बारे में संतोष से बोले थे - “शहरों में एकहन गो लोग अइसन होला“ । शहरों के खौफ से डरे रहनेवाले मेरे दादाजी मुझे शहर किसी भी हालत में भेजने को तैयार नहीं थे। लेकिन शायद इसी बात का प्रभाव था कि मेरे दादाजी मुझे आई0 आई0 एम0 सी0 में नामांकन लेने से नहीं रोके। म...

नूरी से चमकी विज्ञान की चमक

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विज्ञान दिवस पर विशेष इस साल गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर सजी-धजी नूरी की सवारी दिखीं। सबकी नजरें उसी पर टिकी रही। नूरी बकरी की सजावट और कलाकृति ऐसी थी मानो पशमीना बकरी ही 26 जनवरी का परेड देखने आई हो। जम्मू कश्मीर की यह आश्चर्य जनक झांकी तब और भी आश्चर्य जनक हो गई जब लोगों ने जाना कि यह समान बकरी कि कलाकृति नहीं बल्कि पशमीना बकरी की क्लोन नूरी की कलाकृति है। जम्मू कश्मीर ने अपनी झांकी में विज्ञान का यह अनोखा नजारा दिखा कर सबको आश्चर्य चकित कर दिया है। नूरी का जन्म पिछले साल ही 9 मार्च को हुआ है। लेकिन क्लोन बनाने की कला एक दशक पहले ही हासिल की जा चुकी है। 1996 में स्कॉटलैंड में पहला क्लोन “ डॉली ” भेड़ से बनाई गई है। उसके 6 वर्ष ही बाद भारत के वैज्ञानिकों ने भी क्लोन बनाने सफलता हासिल कर ली। 2003 में भारत में भैंस का पहला क्लोन गरिमा बनाया गया है। लेकिन 26 जनवरी के परेड में नूरी को शामिल कर पहली बार क्लोंन विज्ञान को अद्वितीय पहचान दिया गया है। गणतंत्र दिवस पर नूरी क्लोन विज्ञान की अदभूत देन है। एक ओर नूरी से पशमीना ऊन के उत्पादन का भविष्य चम...

छोटे शहरों के बड़े वैज्ञानिक हैं अंकुर

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राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर विशेष देश के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जब उससे मिले तो एकटक देखते रह गए। उस नवयुवक के असाधारण प्रतिभा को देखकर आश्चर्यचकित कलाम के मुँह से निकला   “ आई पाउड ऑफ यू ” । वह नवयुवक बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले के मोतिहारी   चाणक्यपुरी का रहनेवाला अंकुर अरमान है। एक मध्यम वर्गीय परिवार का यह लाल एक से एक अविष्कार कर माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को भी आश्चर्यचकित कर चुका है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग पर किताब लिखनेवाला विश्व का पहला अंडर ग्रेजुएट के नाम से जाने जानेवेले अंकुर बचपन से ही काफी होनहार हैं। जब वे 14 वर्ष के थे तभी एक ट्रांसमीटर का अविष्कार किए और आसपास के क्षेत्रों में एफएम रेडियों का प्रसारण शुरु कर दिए। लेकिन यह एफएम रेडियों उम्र की लिहाज और पैसों के आभाव के कारण रजिस्टर्ड नहीं हो सका। जिससे उन्हें एफएम रेडियो का प्रसारण बंद करना पड़ा। निश्चय ही वह समय अंकुर को हतोत्साहित करने वाला था। लेकिन उन्होनें कभी हार नहीं मान ा आगे बढ़ते ही गए। छोटी उम्र से ही बड़ा काम करनेवाले अ...

गाँधी के चम्पारण सत्याग्रह शताव्दी के क़रीब

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2017 में चम्पारण सत्याग्रह अपनी शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। आज चार वर्ष पहले ही इसकी चर्चा करना सुनने में भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन चम्पारण के लोग अभी से इसकी तैयारी में जुट गए हैं। चम्पारण के भीतहरवा गांधी आश्रम ने अक्टूबर 2011 में ही चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष को विषेश बनाने के लिए उपराष्ट्रपति को अपना ज्ञापन सौंप दिया है। उपराष्ट्रपति सचिवालय ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर राज्य सरकार के मुख्य सचिव को पत्र भेजा है। पत्र में राज्य सरकार का ध्यान चम्पारण सत्याग्रह की सौंवी वर्षगांठ पर पारित प्रस्ताव पर केन्द्रित किया गया है।   चम्पारण सत्याग्रह की धटना भले हीं वर्षों पुरानी हो गई है लेकिन उसकी यादें चम्पारण के लोगों के जेहन से आज भी नहीं मिट पाई है। भले ही   गाँधी   जी   गुजराती थे लेकिन चम्पारण के लोग उन्हें आज भी मसीहा की तरह पूजते हैं। कुछ लोग तो  वहाँ गाँधी   जी   को भगवान की तरह मानकर उनकी विधिवत् पूजा-अर्चना और आराधना तक करते हैं। जिसमें मोतिहारी के गाँधी भक्त तारकेश्वर प्रसाद का नाम अग्रणी है जो केवल गाँधी   जी ...