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Showing posts from 2017

विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization)

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The World Trade Organization ( WTO ) is an International Organization for the Performing of Business Activities . Its main office is in Geneva , Switzerland , and  164 member countries . It was founded on January 1, 1995 after the conventions of the eighth cycle of GATT (General Agreement on Tariffs & Trade). The decision to establish a WTO in the conference of the eighth round of GATT was decided. The main principle of GATT MFN (Most Favored Nation), the main principle of the WTO was created, due to which GAT's merger is considered in this institution. According to the MFN principle, if a country gives any concession to any country in the group then the concession is automatically received by other countries of the group. MFN does not apply in two cases: - (i) FTA / CECA, (ii) LDC - Least Developed Country. In the WTO, additional organizations from countries of the world have also been given membership of the supervisor. Its leading supervisor organiza...

संपोषणीय विकास (Sustainable Development)

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वर्तमान समय में बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण का ह्रास विकास का पर्याय बन गया है। वैसे शहर जो 10 वर्ष पूर्व साफ और स्वच्छ हुआ करते थे, आज विकास के कारण प्रदूषित हो गए हैं।  छोटे शहर तो दूर गाँव की छोटी-छोटी नदियाँ भी प्रदूषित हो चुकी है। बढ़ती जनसंख्या के कारण विकास की इस प्रक्रिया को रोक नहीं सकते, लेकिन ऐसे विकास से उत्पन्न समस्याएँ अंततः विकास का अंत करती नजर आती है। संपोषणीय विकास इन्हीं समस्याओं से निजात पाने के लिए विकास की संकल्पना है। संपोषणीय विकास मानव विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें पर्यावरण का निम्नीकरण किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है, साथ ही भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इनके उपयोग पर बल दिया जाता है। अर्थात संपोषणीय विकास सुनियोजित सिद्धान्त है, जो कि मानव विकास के लक्ष्य को प्राप्त करता है, साथ ही प्राकृतिक संसाधन और पारिस्थितिक तंत्र प्रदान करने की क्षमता प्रकृति में सुरक्षित रहती है। इस विकास प्रक्रिया से पर्यावरण संरक्षण, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरणीय विकास के साथ आर्थिक एवं सामाजिक विकास क...

"आर्थिक विकास में परिवहन की भूमिका "

परिवहन आर्थिक  विकास की रीढ़ की हड्डी कही जा सकती है। उदहारण के लिए यदि गावों का विकास  करना है तो सड़क पहली आवश्यकता है ताकि कृषि वस्तुओं को बाजार और कृषि विकास को नवीन तकनीक प्राप्त हो सके। परिवहन के साधन होने पर ही जीवन-यापन के लिए व्यावसायिक कृषि का विकास कर सकते हैं।  आर्थिक विकास के कई आयाम हैं - शिक्षा, ऊर्जा के श्रोत, वाणिज्यीकरण इत्यादि। आर्थिक विकास के इन आयामों की पूर्ति परिवहन पर निर्भर करती है। यदि औद्योगिक विकास करना हो तो भी परिवहन अति महत्वपूर्ण हो जाता है। इस कारण उद्योगों  परिवहन से संपन्न क्षेत्रों में ही हुआ है। लौह उद्योग बंदरगाहों के निकट लगाया जाना परिवहन  भूमिका को दर्शाता है।  आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की प्राप्ति तभी संभव है जब उस क्षेत्र विशेष में परिवहन के साधन हों। विधुत ऊर्जा, सौर ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, बायोगैस, CNG आदि परम्परागत और गैर परम्परागत ऊर्जा के विकास के लिए भी परिवहन यथा - सड़क, रेल मार्ग, अंतः स्थलीय जलमार्ग या पाइप लाइन आदि के विकास की प्र...

संयुक्त राष्ट्र और इसकी उपलब्धियां (UNITED NATIONS CHALLENGES & ACHIEVEMENTS)

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संयुक्त राष्ट्र ध्वज  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति कायम रखने के लिए विजेता देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया। 24 अक्टूबर 1945 को यह संस्था अस्तित्व में आया। इसके गठन के वक्त 51  सदस्य देश थे। वर्तमान में इसकी संख्या 193   है। भारत इसमें शुरूआती दिनों से ही सदस्य रहा है। इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयार्क शहर में है। अब इसे संयुक्त राष्ट्र के नाम से जाना जाता है।   संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के मुख्य उद्देश्य :- सभी प्रकार के साधनों का उपयोग करके एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये जाने वाले आक्रमण को रोककर अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना।  समानता और आत्म निर्णय के अधिकार के आधार पर विभिन्न राष्ट्रों में मध्य मित्रवत संबंधों का विकास करना।  अन्तर्राश्ट्रीय आधार पर राष्ट्रों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा अन्य मानव संबंधों में सहयोग का विकास करना।  नस्ल, जाती, धर्म, भाषा व लिंग या किसी अन्य समूह पर ध्यान दिए बिना मानवाधिकारों तथा आधारभूत स्वतंत्रता को सम्मान देने की भावना को विकसित ...

ऑर्गेनिक कृषि क्या समय की मांग है ? (Organic Agriculture Demand)

हरित क्रां ति के फलस्वरूप संश्लेषित रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ है,  जिसके कारण पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में अधिकांश कृषि भूमि का निम्नीकरण हो चुका है ,  यह प्रक्रिया लगातार जारी है। इसके विकल्प के रुप में हम जैविक कृषि को अपना सकते है। जैविक कृषि ऐसी कृषि है जिसमें संश्लेषित रसायनों का नगन्य अथवा बिलकुल प्रयोग नहीं होता है। इसमें जैव उर्वरक, कम्पोस्ट, हरी खाद आदि का प्रयोग करते हैं। इसप्रकार जैविक कृषि प्रकृति के अनुकूल कृषि पद्धति है। इस तरह की खेती से न केवल भूमि निम्नीकरण की समस्या को कम कर सकते हैं बल्कि पारिस्थितकी तंत्र का संरक्षण कर जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन भी कर सकते हैं। जैविक कृषि हमारी परम्परागत कृषि के समान ही है। हम इसे वर्षों से अपनाते आ रहे थे लेकिन वर्मान समय में इस कृषि में तीव्र गति से गिरावट आई है। यह पुन: ऑर्गेनिक/जैविक कृषि व्यावसायिक रूप में शुरू हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खाद्यान्नों की कमी ने हमें हरित क्रांति के लिए विवश किया, जिसमें रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हुआ है। लेकिन समय के साथ इससे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य की...

डिजिटलीकरण से घटती दूरियां

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एक समय था,जब हम बैंकों से रूपए निकालने के लिए लम्बी लाइन लगा करते थे, फिर अगले दिन बाजार जाते और सामान खरीदते थे। आज का वक्त है घर बैठे मोबाइल और इंटरनेट से ऑनलाइन सारी शॉपिंग कर लेते है। बीते दो दशक पूर्व और आज की पूरी अर्थव्यवस्था बदल गई है। 1990 की दौर में मोबाइल फ़ोन कल्पना से परे था, जबकि आज हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। डिजिटलीकरण ने आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक गतिविधियों में तीव्र परिवर्तन लाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण की पहुंच काफी कम है फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका साकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे है। भूमि, आधार, बैंक खता, पासपोर्ट आदि की जानकारी ऑनलइन प्राप्त हो रही है।   ग्रामीण और शहरी जीवन के बीच की दूरियाँ कम हुई है। सरकारी कार्यालयों जैसे - शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि से सम्बंधित जानकारी ऑनलइन प्राप्त हो जाने से न केवल सूचना की प्राप्ति आसान हुई है बल्कि इसमें होने वाले भ्रस्टाचार और ऊँच-नीच के भेद-भाव को भी कम किया है। 1990 के वक्त किसानों को मात्र थोड़ी जानकारी के लिए सरकारी कार्यालयों के लम्बे चक्कर काटने पड़ते थे। सरकारी ...

क्या पट्टे/संविदा पर कृषि आनेवाले समय की मांग है ?

      भारत में भूमि धारण क्षमता, दिन पर दिन बढ़ती जनसंख्या के कारण घटती जा रही है। जोत छोटे होने के कारण उत्पादन की अपेक्षा कृषि लागत बढ़ती जा रही है।  कृषि दिन पर दिन अलाभकारी होती जा रही है।  छोटी जोत वाले किसानों का बहुत बड़ा वर्ग इस समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में समस्या के समाधान के लिए संविदा कृषि और पट्टे पर भूमि देने को बढ़ाबा दिया जाना सार्थक साबित होगा। लेकिन इसे कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है।       संविदा कृषि और पट्टे पर कृषि से किसानों पर पड़नेवाले सकारात्मक और नाकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं :- (क) सकारात्मक प्रभाव :- जैसा कि स्पष्ट है जोत छोटा होने से लगत बढ़ती जा रही है। इस समस्या का समाधान संविदा और पट्टे पर कृषि करने से हो जाती है।  जो लोग ऐच्छिक रूप से कृषि नहीं कर रहे हैं वे बेहतर अवसर की तलाश करेंगे और अतिरिक्त लाभ कमा सकेंगे। संविदा कृषि होने से भूमि का एक भड़ा हिस्सा जो खेतों की आड़ के रूप में होता है कृषि उपयोग में आ जाएगा।  सरकार को इस तरह की खेती से प्रबंधन के स्तर पर लाभ मिल सकेगा।...

"2022 तक किसानों की दोगुनी आय का लक्ष्य" (GOAL TO DOUBLING FARMERS'S INCOME BY 2022)

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2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य प्रधानमंत्री की एक महत्वकांक्षी योजना है। आम बजट के माध्यम से सरकार ने विगत वर्ष इसकी घोषणा करते हुए कई कृषि नीतियों की चर्चा की।  कुछ महत्वपूर्ण नीतियां निम्नलिखित हैं:- (1) किसानों के लिए 12 राज्यों में ई-पोर्टल (2) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (3)  मृदा स्वास्थय कार्ड योजना (4) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (5) ऑर्गेनिक कृषि लक्ष्य (6) आन-लाईन खरीद प्रणाली (7) सिंचाई पर जोर / त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम / प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (8) किसान कल्याण कार्यक्रम पर जोर (9) कृषि ऋण की उपलब्धता उक्त सभी नीतियों के माध्यम से सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल कर किसानों का कायपलट करना चाहती है।  इसके लिए  सरकार  द्वारा सात सुत्री कार्यक्रम के माध्यम से कार्य किया जा रहा है, जो निम्न हैं:- (i) उत्पादन में वृद्धि (ii) लागत का प्रभावी उपयोग (iii) उपज के बाद नुकसान कम करना (iv) गुणवत्ता में वृद्धि (v) विपणन (कृ...