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गाँधी के चम्पारण सत्याग्रह शताव्दी के क़रीब

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2017 में चम्पारण सत्याग्रह अपनी शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। आज चार वर्ष पहले ही इसकी चर्चा करना सुनने में भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन चम्पारण के लोग अभी से इसकी तैयारी में जुट गए हैं। चम्पारण के भीतहरवा गांधी आश्रम ने अक्टूबर 2011 में ही चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष को विषेश बनाने के लिए उपराष्ट्रपति को अपना ज्ञापन सौंप दिया है। उपराष्ट्रपति सचिवालय ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर राज्य सरकार के मुख्य सचिव को पत्र भेजा है। पत्र में राज्य सरकार का ध्यान चम्पारण सत्याग्रह की सौंवी वर्षगांठ पर पारित प्रस्ताव पर केन्द्रित किया गया है।   चम्पारण सत्याग्रह की धटना भले हीं वर्षों पुरानी हो गई है लेकिन उसकी यादें चम्पारण के लोगों के जेहन से आज भी नहीं मिट पाई है। भले ही   गाँधी   जी   गुजराती थे लेकिन चम्पारण के लोग उन्हें आज भी मसीहा की तरह पूजते हैं। कुछ लोग तो  वहाँ गाँधी   जी   को भगवान की तरह मानकर उनकी विधिवत् पूजा-अर्चना और आराधना तक करते हैं। जिसमें मोतिहारी के गाँधी भक्त तारकेश्वर प्रसाद का नाम अग्रणी है जो केवल गाँधी   जी   का मंदिर बनाकर सुबह-शाम विधिवत् पूजन और

बिहार में दूसरे चरण का चुनाव : एक तरफ जीत बरकरार रखने की अग्निपरीक्षा तो दूसरी तरफ विरासत हासिल करने की चुनौती

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लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को बिहार की पांच सीटों पर मतदान होगा। इसमें बांका, कटिहार, भागलपुर, पूर्णिया और किशनगंज संसदीय सीट शामिल है।  इन पांचों सीटों पर एक तरफ तो एनडीए का हिस्सा और भाजपा की सहयोगी जेडीयू के उम्मीदवार हैं तो दूसरी तरफ तीन सीटों (किशनगंज, कटिहार और भागलपुर) पर कांग्रेस और दो (बांका और पूर्णिया) पर राजद ने अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इन पांच में से एकमात्र किशनगंज सीट को छोड़कर अन्य चारों सीटों पर जेडीयू ने जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस एकमात्र सीट पर ही एनडीए को हार का मुंह देखना पड़ा था।  इन सभी चारों सीटों पर जेडीयू ने अपने पुराने चेहरे पर भरोसा करते हुए निर्वतमान सांसदों को ही टिकट दिया है।   भागलपुर में कांग्रेस और जेडीयू आमने-सामने भागलपुर के चुनावी रण में एक ओर कांग्रेस प्रत्याशी और भागलपुर विधानसभा सीट से विधायक अजीत शर्मा हैं तो दूसरी ओर जेडीयू से मौजूदा सांसद अजय मंडल है। कभी भागलपुर में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक था। लेकिन  1989 के दंगे ने भागलपुर से कांग्रेस का स

गया से कौन जीतेगा : राजद के कुमार सर्वजीत या हार की हैट्रिक लगा चुके मांझी ?

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लोकसभा चुनाव 2024 : जाने संसदीय क्षेत्र गया का हाल संसदीय क्षेत्र गया, लोकसभा चुनाव 2024 की चर्चित सीट है। एनडीए प्रत्याशी जीतन राम मांझी के चुनाव प्रचार के लिए यहां गृहमंत्री अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक आ चुके हैं। चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों ही यहां अपना पूरा जोर लगा चुके हैं। पहले ही चरण में 19 अप्रैल को हो रहे चुनाव में यह सीट शामिल है।  1967 से ही यह सीट आरक्षित सीट है। यहां 17 बार चुनाव हो चुके हैं।  एनडीए से यहां हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्युलर (हम पार्टी) के मुखिया जीतन राम मांझी खुद चुनावी मैदान में हैं। वही इंडिया गठबंधन से राजद ने बिहार सरकार में मंत्री रह चुके कुमार सर्वजीत को टिकट दिया है। कुमार सर्वजीत दुसाध (पासवान) जाति से हैं। इसके अलावा पांच अन्य दलीय और सात निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव में हैं।  25 सालों से मांझियों का गढ़ है गया गया संसदीय सीट पर पिछले 25 सालों से मांझियों ने जीत दर्ज की है। यह जीत दो महत्वपूर्ण पार्टियों से है। चार बार एनडीए (तीन बार भाजपा और एक बार जेडीयू) और एक बार राजद के उम्मीदवार को जीत मिली है।  हालांकि यहां कभी

क्या जमुई में अर्चना रविदास एनडीए को दे रही कांटे की टक्कर?

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लोकसभा चुनाव 2024: जाने संसदीय क्षेत्र जमुई का हाल जमुई संसदीय सीट संरक्षित सीट है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को यहां चुनाव है।  एनडीए गठबंधन के लोजपा रामविलास के मुखिया चिराग पासवान यहां से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। इस बार यह सीट उन्होंने अपने जीजा अरुण भारती के लिए छोड़ दी है।  उनकी पार्टी जो कि एनडीए गठबंधन का हिस्सा है उसने अरुण भारती को यहां से उम्मीदवार बनाया है।  वही इस सीट पर इंडिया गठबंधन से राजद ने अर्चना रविदास को टिकट दिया है। अर्चना रविदास के पति मुकेश यादव राजद नेता है और पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। जमुई संसदीय सीट का इतिहास जमुई संसदीय सीट पर अब तक मात्र आठ बार ही चुनाव हुए है। इसका कारण परिसीमन है। 1952 के चुनाव के बाद 1957 में यह विलोपित कर दिया गया। पांच साल बाद 1962 में यह दुबारा अस्तित्व में आया। 1977 में परिसीमन के बाद इसे फिर से विलोपित कर दिया गया। 30 साल बाद 2008 के परिसीमन से यह फिर से अस्तित्व में है।  2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से यहां एनडीए गठबंधन की पार्टियों का कब्जा रहा है। 2009 में जदयू के भूदेव चौधरी और 2014 के

नवादा लोकसभा सीट पर क्या यादव फैक्टर राजद पर पड़ेगा भारी?

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लोकसभा चुनाव 2024 : जाने संसदीय क्षेत्र नवादा का हाल नवादा में 19 अप्रैल को चुनाव है। सभी उम्मीदवार अपने - अपने वादों के साथ चुनाव प्रचार में लगे हैं। यहां से आठ उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यहां त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है। नवादा में एनडीए गठबंधन से भाजपा चुनावी मैदान में है वही इंडिया गठबंधन से राजद ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया है। वहीं नवादा के पूर्व राजद विधायक राजबल्लभ यादव के भाई विनोद यादव निर्दलीय खड़े हैं। इसके साथ ही भोजपुरी गायक गुंजन कुमार भी यहां से निर्दलीय भाग्य अजमा रहे हैं। नवादा के उम्मीदवार भाजपा से राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर को टिकट मिला है। ये भूमिहार समाज से आते है। इसके साथ ही ये भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री डॉ सी. पी. ठाकुर के पुत्र है।  वही राजद ने श्रवण कुशवाहा को टिकट दिया है। श्रवण कुशवाहा पिछले कई चुनावों में विभिन्न पार्टियों से अपना भाग्य अजमाते रहे हैं। निर्दलीय खड़ें विनोद यादव राजद के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं। इनके भाई और पूर्व विधायक राजबल्लभ यादव को नाबालिग के साथ दुराचार मामले में सजा मिल चुकी है। राज

“मिनी चितौड़गढ़” कहे जाने वाले औरंगाबाद पर किसका होगा कब्जा?

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लोकसभा चुनाव, 2024: जाने संसदीय क्षेत्र औरंगाबाद का हाल लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को है। सभी उम्मीदवारों ने अपना पर्चा भर दिया है और चुनाव की तैयारी में जुट गए है। हालांकि यहां तैयारी शिक्षा, रोजगार, विकास या उम्मीदवारों की काबिलियत से नहीं जाति आधारित होती रही है। मिनी चितौड़गढ़ की कहानी औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र राजपूत बहुल होने के कारण लोग इसे मिनी चितौड़गढ़ भी कहा करते हैं। राजपूत वोटर्स की संख्या यहां 2 लाख के आस- पास है। वही दूसरें नंबर पर यादव आते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यादव वोटर्स की संख्या 1.90 लाख, मुस्लिम 1.25 लाख और कुशवाहा भी 1.25 लाख के आस-पास है। वही भूमिहार वोटर्स की संख्या एक लाख और दलितों की संख्या 2 लाख से अधिक है। अति पिछड़ा वर्ग का वोट भी चुनाव पर असर डालता है। जातीय समीकरणों के आधार पर देखे तो यहां राजपूत और दलित वोटर्स समान संख्या में है। यादव, मुस्लिम और कुशवाहा वोटर्स भी निर्णायक मत देने की काबिलियत रखते हैं। राजपूत सांसदों का वर्चस्व हालांकि औरंगाबाद संसदीय सीट पर हमेशा से राजपूत उम्मीदवारों को ही जीत मिली है। बिहार विभूति के नाम

विडम्बनाओं और विरोधाभासों का अंत : महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment)

       'वर्षों से जहाँ औरतें देवी की स्वरुप मानी जाती हैं वहीं मंदिरों में उनका प्रवेश वर्जित रहा है।' यह विडम्बना नहीं तो और क्या है? कैसे विश्वाश किया जाए इन रीति-रिवाजों पर? जब मन किया देवी बना दिया, जब मन किया अछूत बना दिया। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि स्त्री को इस समाज ने अपनी आवश्यकतानुसार जी भरकर भोगा है। सवाल तो यही है यदि भोग की वस्तु ही मानना था, तो देवी क्यों बनाया? शायद इसलिए कि बुद्धिप्राप्त इस स्त्री नामक जीव का उपभोग किया जा सके।        यह अनावश्यक नहीं एक षड़यंत्र है, महिलाओं को अपने वश में कर उसका शोषण करने के लिए। कोई भी रिति-रिवाज उठाकर देखें तो वहां लाभ से ज्यादा औरतों की विवशता है, जैसे - सिंदूर लगाना, ससुराल जाना, ससुराल की घोर शोषणकारी रश्में-रिवाज अगैरह-बगैरह। रिवाजें तो यहाँ तक भी है सूरज उगने से पहले उठना, झाड़ू लगाना, सबसे बाद में खाना, कोई नहीं खाए  तो मत खाना।        बेशक कुछ लोग इन रिवाजों को रिवाज के स्थान पर वैज्ञानिकता और तर्क को पेश कर सही ठहरा सकते हैं।  लेकिन फिर भी वर्तमान समय में परिस्थिति कुछ सुधरी है, और सुधार की ओर अग्रसर है। मैं

Working Women and Housewife

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          I have seen a single woman carrying the burden of office, home, children, old-aged people and other family members restlessly. If she is weak on any front, then she has faced question marks of rituals and conduct. Still, I have seen them smiling and working by putting makeup on face and lipstick on lips .          In fact, if there is a hard-working woman in the agricultural fields or a woman working in a large office/firm, the similarity can be seen in both the situation. From the farm land to the office, if a woman returns home after working hard as a man, there is no mercy on women while men take rest after return. She immediately takes the burden of being a mother, being a daughter, and being a housewife.                     The women  belong  to poor families who work in the  fields/wages  do not get any maternity leave; they have to bear the burden of the household, in spite of this, only a few pieces of bread are fortunate in their plate. The energy of

कामकाजी महिलाएं तथा घर की देखभाल (Working Lady and Home-Care)

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               दफ्तर , घर , बच्चे , बूढ़े और अन्य परिवार के सदस्यों का बोझ एक अकेले स्त्री को उठाते हुए  मैंने  देखा है। यदि किसी मोर्चे पर वह कमजोर पड़ी है तो उसपर संस्कारों और आचरणों के प्रश्न चिन्ह भी लगते देखा है। फिर भी चेहरे पर  मेकअप और ओठों पर लिपिस्टिक लगाकर मुस्कुराते देखा है।        सच में गौर करें तो खेतों में कठिन से कठिन श्रम करने वाली महिला हो या किसी बड़े दफ्तर में कार्य करने वाली महिला, दोनों  की परिस्थिति में समानता देखी जा सकती है। खेत से लेकर दफ्तर तक यदि स्त्री पुरुष के समान कठिन परिश्रम करके लौटे,  तो भी घर आकर पुरुष जहां आराम फरमाते हैं,  वहीं  स्त्रियों  पर कोई रहम नहीं होती । वह तुरंत एक मां होने का बोझ उठाती है, बहु होने का बोझ उठाती है और गृहिणी होने का भी बोझ उठाती है।        गरीब परिवार की वे महिलाएं जो खेतों में मजदूरी / कार्य करती हैं , उन्हें कोई मातृत्व अवकाश नहीं मिलता, घर का बोझ भी उन्हें ही उठाना होता है, इसके बावजूद उनकी थाली में बचे-खुचे रोटी के चंद टुकड़े ही नसीब होते हैं। इतनी कम पोषाहार लेने के बाद भी इन महिलाओं की ऊर्जा हमें झकझो

भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India)

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      भारतीय वन सर्वेक्षण या Forest Survey of India (FSI) की स्थापना 1 जून, 1981  को हुई। यह इकाई पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार (Ministry of Environment, Forest and Climate Change, Government of India) के अंतर्गत आता है। इसका मुख्यालय देहरादून, उत्तराखंड में है।भारत सरकार ने इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 1965 में Food and Agriculture Organization (FAO) and United Nations Development Programme (UNDP) की आर्थिक सहायता से की। वर्ष 1976 में National  Commission on Agriculture (NCA) ने राष्ट्रीय वन सर्वेक्षण संसथान, यानि FSI की स्थापना की अनुशंशा की और इसी वर्ष इसकी स्वीकृति मिल गई।        प्रारम्भ में इसकी स्थापना भारत के वन संसाधनों का लगातार और नियत समय अंतराल में सर्वेक्षण करना था। वर्ष 1986 में FSI को जनादेश और इसकी आवश्यकता के आधार पर पुनः परिभाषित किया गया। FSI प्रति दो सलों में देश में उपलब्ध वन क्षेत्र का आंकड़ा उपग्रह की  सहायता से प्राप्त कर इनका आंकलन कर परिणाम (State of Forest Report (SFR)) को प्रकाशित करता रहा है, यह प्रक्रिया वर्ष 1987 से अमल मे

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India)

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भारतीय प्राणी सर्वेक्षण या Zoological Survey of India (ZSI) की स्थापना 1 जुलाई, 1916 को ब्रिटिश  भारतीय साम्राज्य द्रारा की गई। अब यह इकाई पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार (Ministry of Environment, Forest and Climate Change, Government of India) के अंतर्गत आता है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है। वास्तव में ZSI की शुरुआत वर्ष 1875 में भारतीय संग्रहालय की शुरुआत के साथ हुई, हालाँकि ZSI सम्बंधित कार्य पहले से होता चला आ रहा था। ZSI की स्थापना में नथनेल वल्लीच (Nathaneil Wallich) का बड़ा योगदान माना जाता है।  इसकी अस्थापना भारत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का सर्वेक्षण, अनुसन्धान एवं लुप्तप्राय प्राणियों के संरक्षण के लिए किया गया है। अब तक भारत में कुल 1,00,693 प्राणियों की प्रजाति को परिभाषित की जा चुका है। दिन-प्रतिदिन नए जीव प्रजातियों की खोज एवं अन्वेषण के प्रयास चल रहे हैं। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के प्रारंभिक लक्ष्य निम्नलिखित हैं:- अन्वेषण, सर्वेक्षण, विभिन्न राज्यों में पाए जानेवाले प्राणियों की विविधता को सूचीबद्ध तथा संरक्षण करना, एवं जरुरत पड़ने प